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सोमवार, 4 जुलाई 2016

पादना ये प्रकृति कि पुकार है

पादना
ये प्रकृति कि पुकार है
अब अपानवायु को हम रोक तो नहीँ सकते न
निकल गया सो निकल गया !
हाँ तो एक बार एक ग्रृप मे
मैनेँ मोदी - दिग्गविजय पाद प्रसंग पर एक जोक चैँप दिया था
ओर तब उस सभ्य समाज के
कट्टर मुखिया ने हमे ठेँगा देखाते
हुए
कहा था
खबरदार !!
इहा माताएँ बहनेँ
भी है
ऐसे उलजलुल पोस्टिआने से बचेँ !!
मैँ कंफ्युज हुँ
शायद महिलाएँ
लघुशंका दीर्घशंका
और पर्द्दन आदि नित्यकर्म करती ही नहीँ
उनका इंजन पुरुषोँ से बिलकुल भिन्न होता होगा ।
मुझे पता नहीँ शायद ऐसा ही हो !!
खैर तब
मैने अपनी गलती मान ली
और उन दिग्गजोँ के आगे स्वयं को सरेँडर कर दिया !
जोक ये था
"एकबार मोदीजी पत्रकारोँ से बात कर रहे थे
और किसी ने उनके आगे दिग्गविजय का नाम ले लिया
मोदी ने कुछ कहे बगैर
पाद दिया
अगले दिन देश भर मे पतरकारोँ ने इसे मुख्य मुद्दा बनादिया
कि देखो
मोदी ने दिगविजय के मुँह पर पाद दिया !"
संस्कृत शब्द ‪#‎ पर्द्दन‬से हिन्दी बाग्ला मे ‪#‎ पाद‬
ओड़िआ मे ‪#‎ पाड़‬
तथा
अंग्रेजी मे ‪#‎ Fart‬शब्द प्रचलन मे आया ।
वैसे
जानवरोँ मे शियार और गिदड
सबसे उत्कट गंधयुक्त अपानवायु छोड़ने के लिए जाने जाते है ।
बचपन मे 5 बच्चे साथ साथ बैठे हो और उनमे से कोई
पाद दे तो
एक काठी घुमैके
मुहावरा बोलके जिसके पास अन्तिम शब्द खत्म होता था
उसे ही दोषी करार दिया जाता था

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