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सोमवार, 21 जुलाई 2025

घोड़े का अंडा

हरिहर एक बहुत ही सरल और भोला व्यक्ति था। एक दिन वह पास के किले में लगने वाले हाट में सब्जियां खरीदने गया। उस युग में नई-नई भारत में अमेरिका से कद्दू (Cucurbita maxima) आया था। उस समय गांव के लोग पेठा (Benincasa hispida) को ही कखारू कहते थे (आज भी ओडिशा के कुछ क्षेत्रों को छोड़कर अधिकांश जगहों पर पेठा को ही कखारू कहा जाता है)।
चूंकि कद्दू नया था, लोग इसे ज्यादा नहीं खरीदते थे। कई लोगों को बेचने की कोशिश करने के बाद व्यापारी निराश हो चुका था। तभी उसने हरिहर को उधर से गुजरते देखा और उसे पास बुलाया। हरिहर से कुछ देर बात करने के बाद व्यापारी को पता चल गया कि वह बहुत ही सरल और भोला है। इसलिए उसने हरिहर को एक कद्दू देते हुए कहा, "देखो, यह घोड़े का अंडा है। इसे खाने से शरीर में बहुत ताकत आती है।"
हरिहर भोला था, लेकिन वह व्यापारी की बात पर आसानी से विश्वास नहीं कर पाया। व्यापारी ने उसके मनोभाव को समझकर फिर कहा, "यह कोई साधारण घोड़े का अंडा नहीं है, यह पक्षीराज घोड़े का अंडा है। पक्षीराज घोड़ा आकाश में उड़ता है और बहुत तेज दौड़ता है।" हरिहर का सरल मन ठगा गया। उसने सब्जी खरीदने के बजाय कद्दू को पक्षीराज घोड़े का अंडा समझकर हाट से खरीद लिया और घर की ओर चल पड़ा।
इधर जंगल में राजा के लोग शेर का शिकार कर रहे थे। आज केवल गुजरात के गिर अभयारण्य में 600 से 1000 के बीच शेर बचे हैं, लेकिन मात्र 500 साल पहले पूरे भारत में शेर हर जगह दिखाई देते थे। राजा के लोगों के शिकार के डर से एक शेर एक झाड़ी में छिपा हुआ था। पांच दिनों से शिकारी उस शेर को मारने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन शेर अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर छिप रहा था। बेचारा शेर अपनी जिंदगी की सारी उम्मीद छोड़ चुका था, फिर भी वह छिपता रहा।
उस समय संध्या होने वाली थी। हरिहर घोड़े के अंडे के रूप में कद्दू लिए खुशी-खुशी घर जा रहा था कि अचानक ठोकर लगने से उसके हाथ से कद्दू छिटककर उस झाड़ी में जा गिरा, जहां शेर छिपा था।
शेर शिकारियों के डर से झाड़ी में छिपा था, और जैसे ही कद्दू उस झाड़ी में गिरा, वह सूखे पत्ते की तरह कांपने लगा।
हरिहर ने झाड़ी में अपना "घोड़े का अंडा" ढूंढते हुए वहां छिपे शेर की गर्दन पकड़ ली। हरिहर ने मन में सोचा कि शायद घोड़े का अंडा नीचे गिरकर फट गया होगा और उसमें से पक्षीराज घोड़ा निकलकर वहां खड़ा हो गया होगा। संध्या के समय झाड़ी वाली जगह पर कुछ साफ दिखाई नहीं दे रहा था। इधर शिकारियों के डर से शेर की सांसें अटक गई थीं। जैसे ही हरिहर ने उसे जोर से पकड़ा, शेर और रुका नहीं। वह आंखें मूंदकर अपनी जान बचाने के लिए तेजी से दौड़ पड़ा। हरिहर किसी तरह शेर की पीठ पर सवार हो गया। शेर दौड़ता रहा और बहुत दूर तक चला गया। हरिहर का गांव पीछे छूट गया, लेकिन उसे कुछ पता नहीं चला। हरिहर शेर की पीठ पर बैठकर सोच रहा था कि वह पक्षीराज घोड़े पर सवार होकर आकाश में उड़ रहा है।
जंगल के रास्ते में शेर दौड़ रहा था, इसलिए हरिहर को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, लेकिन जैसे ही शेर जंगल छोड़कर खुले मैदान में दौड़ने लगा, हरिहर ने उसे देखा और उसका हलक सूख गया। शेर दौड़ रहा था, और किसी तरह हरिहर ने एक डाल पकड़कर अपनी जान बचा ली।

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