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रविवार, 20 जुलाई 2025

Earth-22765: एक समानांतर विश्व में पराधीन भारत का चित्रण

13 अगस्त 2025, सुबह 7:00 बजे दिल्ली की धूल भरी सड़कों पर एक भारतीय युवक "विनोद" अपनी पुरानी खटारा साइकिल की पेडल मारता हुआ चांदनी चौक की ओर जा रहा है। सड़क के दोनों ओर स्थित सरकारी भवनों पर ब्रिटिश झंडे फहरा रहे हैं। विनोद जब भी इन विदेशी झंडों को देखता है, उसके मन में एक अनजाना असंतोष जाग उठता है।
 उसने अपने पिता से स्वतंत्रता संग्राम की कहानियाँ सुनी हैं—कैसे सुभाष बोस का सशस्त्र विद्रोह और 1946 का भारतीय नौसैनिक विद्रोह विफल हो गया, इत्यादि। 18 फरवरी 1946 को बम्बई (वर्तमान मुंबई) में रॉयल इंडियन नेवी म्यूटिनी शुरू हुई थी। भारतीय नौसैनिकों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ, खराब कार्य परिस्थितियों, नस्लीय भेदभाव और स्वतंत्रता की मांग को लेकर विद्रोह किया था। यह आंदोलन देश के अन्य हिस्सों में भी फैल गया। बाद में भारतीय सेना और पुलिस विभाग में काम करने वाले भारतीयों ने भी इसमें भाग लिया। सरदार वल्लभभाई पटेल और जिन्ना जैसे नेताओं ने आंदोलनकारियों से आंदोलन वापस लेने का अनुरोध किया, लेकिन वे इसे मानने को तैयार नहीं हुए। उसी दिन अज्ञात कारणों से सरदार पटेल की हत्या हो गई और जिन्ना पर जानलेवा हमला हुआ, जिसके फलस्वरूप पृथ्वी-22765 का इतिहास ही बदल गया।  

तत्कालीन कांग्रेस और मुस्लिम लीग के नेता व समर्थक आंदोलनकारियों के विरोधी हो गए। दोनों के बीच गुटबाजी शुरू हो गई। इस अवसर का लाभ उठाते हुए अंग्रेजों ने आंदोलन पर नियंत्रण बनाए रखने की कोशिश की।  

भयंकर सैन्य विद्रोह देखकर तत्कालीन ब्रिटिश शासन ने संयुक्त राज्य अमेरिका से मदद मांगी। उस समय डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति थे। विन्सेंट चर्चिल उन्हें अपने पुत्र की तरह स्नेह करते थे। ट्रंप भी चर्चिल को अपने गुरु की तरह मानते थे। इसलिए उन्होंने बिना देरी किए भारत में अमेरिकी सेना भेज दी। अमेरिकी सैनिकों ने अंग्रेजों के साथ मिलकर दमन का खेल शुरू कर दिया। भारतीय सैनिकों में ज्यादातर मारे गए और जो बचे, वे गुप्त रूप से छिप गए और आजीवन स्वतंत्रता संग्राम जारी रखने के लिए विद्रोही बन गए। अमेरिकी सैनिकों के कारण हजारों भारतीय यातना के शिकार हुए। गाँवों की लूटपाट और बलात्कार जैसे कृत्यों में लिप्त रहने के बाद अमेरिकी सैनिक अपने देश लौट गए। लेकिन आधे से अधिक शताब्दी के संघर्ष के बावजूद भी भारत स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर सका।  

इन सब बातों को सोचते हुए विनोद कारखाने के पास पहुँच गया। दिल्ली के एक कपड़ा कारखाने में विनोद काम करता है, जो ब्रिटिश कंपनी के स्वामित्व में संचालित होता है। भारतीय अर्थव्यवस्था अब भी कृषि और कच्चे माल की आपूर्ति पर निर्भर है। हमारे Earth-616 के स्वतंत्र भारत में सूचना प्रौद्योगिकी और सेवा उद्योग का उदय हुआ है, लेकिन Earth-22765 में यह केवल एक सपना मात्र है। ब्रिटिश कंपनियाँ भारत के खनिज संसाधनों और श्रम का शोषण कर रही हैं, लेकिन आय का अधिकांश हिस्सा ब्रिटेन को जा रहा है। विनोद और उसके साथी दिन में 12 घंटे काम करते हैं और महीने में केवल कुछ सौ पाउंड की कमाई करते हैं।  

विनोद के ग्रामीण स्कूल में ओड़िया भाषा में पढ़ाई नहीं होती। स्कूलों में केवल अंग्रेजी भाषा में ब्रिटिश इतिहास पढ़ाया जाता है। भारतीय त्योहारों पर कड़ा नियंत्रण है, और क्रिसमस जैसे ईसाई त्योहार मनाने के लिए सभी भारतीयों को बाध्य किया जाता है। जो हर रविवार चर्च नहीं जाता या ईसाई त्योहार नहीं मनाता, उसे जुर्माना देना पड़ता है। 1946 के सैनिक विद्रोह के बाद पृथ्वी-22765 के समानांतर विश्व में अंग्रेजों ने धार्मिक हस्तक्षेप किया। इसके कारण कई लोग देश छोड़कर पलायन कर गए और कुछ ने विद्रोह किया, जिसके फलस्वरूप वे ब्रिटिश हाथों मारे गए। जो बचे, वे डरते-डरते जीते रहे या ईसाई बन गए। हिंदुओं की संख्या अधिक होने के कारण वे सबसे अधिक प्रभावित हुए। इस विश्व की पृथ्वी में तब से किसी भी मंदिर में पूजा-अर्चना नहीं होती। सभी को ईसाई बनने के लिए या इस विचार को मानने के लिए बाध्य किया गया है। विनोद का दादा गुप्त रूप से गीता पढ़ते हैं, लेकिन ब्रिटिश अधिकारियों के डर से इसे छिपाकर रखते हैं। हालांकि, अंग्रेजों की धार्मिक नीतियों के खिलाफ कई लोगों ने विद्रोह किया, लेकिन कठोर हाथों से उन्हें दबा दिया गया।  

फिर भी, हमारे Earth-616 की तरह Earth-22765 में भी तकनीकी प्रगति हुई है, इसलिए यहाँ भी जनसमाज तक मोबाइल और इंटरनेट पहुँच बना चुका है। विनोद एक पुराने फोन का उपयोग करता है, लेकिन इंटरनेट उसके लिए एक विलासिता की वस्तु है। ब्रिटिश शासन में इंटरनेट की सुविधा केवल शासक वर्ग और धनी भारतीयों के लिए सीमित है। एक मेगाबाइट डेटा की कीमत विनोद के एक दिन के वेतन के बराबर है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे X या फेसबुक मौजूद हैं, लेकिन ब्रिटिश अधिकारी इन्हें कड़ी सेंसरशिप के माध्यम से नियंत्रित करते हैं। केवल अमेरिका, जर्मनी, रूस और ब्रिटेन के गोरे ही इन सोशल मीडिया को संचालित करते हैं। सोशल मीडिया साइट्स पर केवल स्वतंत्र नागरिक ही सदस्य बन सकते हैं, जिनके पास ब्रिटिश शासन से प्राप्त रेड कार्ड है। भारत के कुछ धनी लोगों के पास ही यह रेड कार्ड है। गरीब भारतीयों के लिए यह एक दिवास्वप्न की तरह हो गया है। फिर भी, कुछ धनी भारतीयों की मदद से गुप्त रूप से एक डिजिटल समूह काम कर रहा है, जहाँ वे स्वतंत्रता के सपने और भारतीय संस्कृति की प्रशंसा करते हैं। लेकिन वे आग से खेल रहे हैं, क्योंकि कोई भी पोस्ट गलत हाथों में पहुँच जाए तो जेल निश्चित है। केवल धनी लोगों के पास ही टीवी है, और उसमें केवल एक चैनल बीबीसी आता है, जिसमें ब्रिटिश शासन की बातें प्रचारित होती हैं। रेडियो कुछ मध्यम वर्ग के लोगों के पास भी है, लेकिन उसमें केवल अंग्रेजी जैसे विदेशी भाषा के चैनल ही आते हैं। कुछ विद्रोही समूह स्थानीय स्तर पर गुप्त टीवी और रेडियो चैनल खोलकर स्वतंत्रता संग्राम का प्रचार करते हैं, लेकिन थोड़े समय में पकड़े जाने और विफल होने की नौबत भी आती है।  

विनोद के गाँव में एक गुप्त सभा हो रही है। कुछ युवक एक नए विद्रोह की योजना बना रहे हैं। ब्रिटिश गवर्नर-जनरल के शासन में भारतीयों को कोई राजनीतिक अधिकार नहीं मिला है। संसद नहीं, वोट नहीं, केवल ब्रिटिश अधिकारियों के आदेश पर आदेश आते हैं और नया कुछ सुनने को नहीं मिलता। विनोद का साथी राहुल हमेशा कहता है, “अगर हम 1946 के सैनिक विद्रोह के समय स्वतंत्रता प्राप्त कर लेते, तो आज हम अपने देश के मालिक होते।” लेकिन यह बात कहना भी Earth-22765 में एक भयंकर अपराध है, क्योंकि यहाँ हर गली-नुक्कड़ पर जासूस मौजूद हैं।  

विनोद की छोटी बहन सुनीता स्कूल जाकर पढ़ना चाहती थी, लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाती। ब्रिटिश शासन में शिक्षा केवल धनी भारतीय और ब्रिटिश अधिकारियों के बच्चों के लिए सीमित है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल बहुत कम हैं, और शिक्षा व्यवस्था ब्रिटिश संस्कृति और इतिहास को प्रोत्साहन देती है। इसके अलावा भारतीय समाज और रूढ़िवादी हो गया है और अपनी भाषा-संस्कृति को गुप्त रूप से बचाए रखने के लिए प्राणपण प्रयास कर रहा है। सुनीता घर पर माँ से ओड़िया भाषा और संस्कृति सीख रही है, लेकिन यह गोपनीय है। सामाजिक असमानता इतनी अधिक है कि गरीब भारतीय हमेशा उपेक्षित रहते हैं। हजारों भारतीय दवाओं की कमी से महामारी के शिकार होकर मर रहे हैं। वर्षों के सूखे और प्राकृतिक आपदाओं के कारण भी जनहानि हो रही है। लेकिन अंग्रेज शासन का इस पर कोई दायित्व नहीं है। लोगों को विभिन्न तरीकों से शोषण कर ब्रिटेन को समृद्ध करना ही अंग्रेजों का मूल लक्ष्य है।  

इस समानांतर विश्व Earth-22765 में भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र नहीं है। ब्रिटेन के अन्य औपनिवेशिक क्षेत्रों की तरह भारत केवल एक संसाधन का स्रोत है। वैश्विक मंच पर भारत का कोई स्वतंत्र पहचान नहीं है। विनोद ने एक बार अपनी कपड़ा कंपनी के गोरे मालिक के घर में रखे टेलीविजन पर देखा था कि ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देशों ने विश्व में अपना प्रभुत्व विस्तार किया है, लेकिन भारत केवल एक नाम मात्र रह गया है।  

लेकिन विनोद और उसके जैसे अन्य युवक हार नहीं मानते। वे अब भी स्वतंत्रता का सपना देखते हैं। एक रात विनोद एक अंडरग्राउंड गुप्त सभा में शामिल हुआ। नरेंद्र दामोदर दास मोदी के नेतृत्व में उस समय भारत में स्वतंत्रता संग्राम जोरों पर चल रहा था। मोदी के भाषण को सुनकर विनोद के मन में नई आशा की किरण जगी। उसने निर्णय लिया कि एक दिन वह और उसके साथी इस क्रूर विदेशी शासन से मुक्ति पाएंगे और भारत फिर से अपनी पहचान वापस पा लेगा।  

समानांतर विश्व (Parallel Universe) या समानांतर ब्रह्मांड एक तात्त्विक धारणा है और यह आधुनिक भौतिक विज्ञान और ब्रह्मांड विज्ञान में प्रयोग किया जाता है। इस तात्त्विक धारणा के अनुसार, हमारे इस ब्रह्मांड के अलावा अन्य ब्रह्मांड भी अस्तित्व में हो सकते हैं और हमारे ब्रह्मांड के साथ समानांतर रूप में विद्यमान रहते हैं। इन समानांतर ब्रह्मांडों में भिन्न-भिन्न भौतिक नियम, समय, घटनाएँ या जीवन के रूप हो सकते हैं। समानांतर विश्व की धारणा बहुविश्व तत्व (Multiverse Theory) का एक हिस्सा है। इस सिद्धांत के अनुसार असंख्य ब्रह्मांड अस्तित्व में हैं, जिनमें घटनाओं के परिणाम भिन्न हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक समानांतर विश्व में आप एक भिन्न समयकाल में हो सकते हैं या आपका जीवन परिचय भिन्न हो सकता है। क्वांटम भौतिक विज्ञान में "Many Worlds Interpretation" के अनुसार प्रत्येक क्वांटम घटना ब्रह्मांड को विभिन्न शाखाओं में विभाजित करती है, जहाँ सभी संभावित परिणाम घटित होते हैं। यह समानांतर विश्व की एक वैज्ञानिक आधार प्रदान करता है।  

कुछ समानांतर विश्वों में हमारे ब्रह्मांड के भौतिक नियम (जैसे गुरुत्वाकर्षण या समय की प्रकृति) भिन्न हो सकते हैं। अन्य में इतिहास की घटनाएँ भिन्न रूप से घटित हुई हैं। हालांकि, वर्तमान तक समानांतर विश्व का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिला है। यह केवल एक तात्त्विक धारणा है, जो गणितीय मॉडल और वैज्ञानिक अनुमान पर आधारित है। कुछ वैज्ञानिक इसे समर्थन करते हैं, लेकिन अन्य इसे अनुमानमूलक मानते हैं। यहाँ भारत अब तक पराधीन रहा होता तो देश की क्या दुर्दशा होती, यह कथात्मक शैली में वर्णन किया गया है।  
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भारत में ब्रिटिश शासन (1757-1947) ने देश के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। यदि 1947 के बाद भी ब्रिटिश शासन जारी रहता, तो भारत की स्थिति क्या होती, इसे समझने के लिए ब्रिटिश शासन की पूर्व स्थिति और उसकी नीतियों को जानना होगा।  

ब्रिटिश शासन से पहले भारत एक विविधतापूर्ण देश था, जहाँ मुगल, मराठा, सिख और अन्य क्षेत्रीय शक्तियाँ शासन करती थीं। भारत की अर्थव्यवस्था कृषि और हस्तशिल्प पर निर्भर थी और देश विश्व के आर्थिक शक्तिशाली राष्ट्रों में गिना जाता था। लेकिन अंग्रेजों के आगमन के साथ भारत की अर्थव्यवस्था और समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा।  

ईस्ट इंडिया कंपनी और 1857 के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीय संपदा का शोषण कर उसे ब्रिटेन में स्थानांतरित किया। भारतीय हस्तशिल्प नष्ट हो गया और भारत को केवल कच्चा माल आपूर्तिकर्ता और ब्रिटिश उत्पादों का बाजार बनाया गया। अंग्रेजों ने आधुनिक शिक्षा, रेलवे और कानूनी व्यवस्था के साथ भारतीयों को परिचय कराया, लेकिन यह मुख्यतः उनके शासन को मजबूत करने के लिए था। सती प्रथा और बाल विवाह जैसे कुप्रथाओं के खिलाफ कानून लाए, लेकिन सामाजिक असमानता और जातिगत विभेद को उन्होंने और बढ़ाया। अंग्रेजी भाषा और पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव बढ़ा, जिसने भारतीय पहचान को कुछ हद तक कमजोर किया। यदि 1947 के बाद भी अंग्रेज शासन जारी रहता, तो भारत की स्थिति पर "पृथ्वी-22765" समानांतर विश्व की कहानी में प्रकाश डाला गया है।  

यदि आज भी भारत पराधीन होता, तो अंग्रेज शासन के अधीन भारत की अर्थव्यवस्था ब्रिटिश स्वार्थ को प्राथमिकता देती। आधुनिक भारत की आर्थिक प्रगति, जैसे सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग, उत्पादन और सेवा क्षेत्र में जो उन्नति हुई है, वह संभवतः सीमित रहती। भारत केवल एक कच्चा माल आपूर्तिकर्ता और ब्रिटिश उत्पादों का बाजार ही रहता। स्वतंत्र भारत में टाटा, रिलायंस जैसे औद्योगिक घरानों का उदय हुआ है, लेकिन अंग्रेज शासन में यह असंभव होता।  

आर्थिक शोषण के कारण गरीबी और असमानता और बढ़ती। अंग्रेज शासन जारी रहता, तो भारतीय संस्कृति और पहचान पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव और गहरा होता। अंग्रेजी भाषा एकमात्र प्रशासनिक और शैक्षिक माध्यम होती, जो हिंदी, ओड़िया, बंगाली जैसे क्षेत्रीय भाषाओं को कमजोर करती। अंग्रेज ईसाई धर्म के प्रचार को प्रोत्साहन देते, जिससे संख्या में अधिक हिंदुओं की सांस्कृतिक पहचान कमजोर पड़ती। शिक्षा व्यवस्था ब्रिटिश मॉडल पर आधारित होती, लेकिन यह आम जनता के लिए सीमित रहती, जो असमानता को बढ़ाती। केवल अंग्रेज और धनी "काले अंग्रेज" ही पढ़ते। अंग्रेज शासन में भारतीयों को पूर्ण राजनीतिक अधिकार नहीं मिलते। लोकतांत्रिक व्यवस्था के बजाय एक औपनिवेशिक शासन जारी रहता। स्वतंत्रता संग्रामियों को दबाया जाता और राजनीतिक आंदोलनों को कठोरता से नियंत्रित किया जाता। अंग्रेज अपनी विभाजनकारी नीति जारी रखते और हिंदू-मुस्लिम विभेद को और बढ़ाते, जो सांप्रदायिक संघर्ष को बढ़ाता।  

सबसे बड़ी बात यह है कि यदि आज भी अंग्रेज शासन होता, तो भारतीयों की तरह सोशल मीडिया पर आकर जो चाहे लिख देना असंभव हो जाता। आधुनिक भारत में सस्ते इंटरनेट और सोशल मीडिया का क्रांति रिलायंस जियो जैसे भारतीय कंपनी और डिजिटल इंडिया जैसी सरकारी नीतियों का फल है। यदि अंग्रेज शासन जारी रहता, तो अंग्रेज प्रौद्योगिकी को आम जनता के लिए सुलभ करने के बजाय इसे एक सीमित वर्ग (ब्रिटिश अधिकारी और धनी भारतीय) के लिए रखते। जियो जैसे कंपनी का उदय नहीं होता और इंटरनेट की कीमत आकाश छूती। इंटरनेट और मोबाइल जैसे विलासिता भारतीय जनता के लिए सपना बन जाती। अंग्रेज शासनाधीन भारत में सोशल मीडिया में भारतीयों की भागीदारी सीमित रहती, क्योंकि अंग्रेज शासन में मुक्त मत अभिव्यक्ति को नियंत्रित किया जाता। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सेंसरशिप लागू होती और भारतीयों के लिए इसका उपयोग सीमित रहता। शायद कुछ गिनती के धनी भारतीय ही इसे चला पाते। स्वतंत्र भारत में डिजिटल इंडिया जैसे कदम ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट पहुँचाया है। अंग्रेज शासन में यह असंभव होता, क्योंकि वे ग्रामीण विकास को प्राथमिकता नहीं देते।  

वर्तमान भारत में 80 करोड़ से अधिक इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं। यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर (X) और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया आज भारतीयों को वैश्विक मंच पर मत अभिव्यक्ति करने में सहायक हो रहे हैं। पराधीन भारत में अंग्रेज समाचार पत्र और मुक्त मत अभिव्यक्ति को नियंत्रित करते थे। आज भी यदि अंग्रेज शासन होता, तो सोशल मीडिया भी सेंसरशिप का शिकार होता और भारतीयों को राजनीतिक या सामाजिक मत अभिव्यक्ति में बाधा डाली जाती। जो लोग अंग्रेज शासन के समय रामराज्य था, ऐसा सोशल मीडिया पर लिखते हैं, उन्होंने अतीत के भारत के चित्र को कभी हृदयंगम नहीं किया।  

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