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मंगलवार, 30 जुलाई 2013

कौन बड़ा ?

("धन के लालच मेँ लोग कर्मवादी हो गये ।पर कर्म अगर अधर्म से किया जाय तो वो अकर्म कहलायेगा ।। धर्म मेँ न्याय और सत्य रुपक भगवान नहीँ तो वो धर्म किस काम का ?")...............एक भाई ने कल एक प्रश्न किया कि धर्म बड़ा या कर्म ? उपर लिखा वाक्य इस प्रश्न का उत्तर के कुछ अंश मात्र है । कुछ लोग वात वात पर धन को महानतम पद दे देते है । पर जो धन विना परिश्रम के मिल जाता है वो किसी काम का नहीँ हे । और कर्म भी अगर अधर्म से किया जाय तो उसके फल भी जहरीले होते है ।इसलिये कर्म से धर्म को शास्त्रो मे महान बताया गया । अन्याय और अनैतिक नियम के समाहार को आप धर्म कैसे कह सकते हो । धर्म संसार के रक्षक हे भक्षक नहीँ । जो धर्म मेँ ज्ञान और सत्य नहीँ वो धर्म केवल स्वार्थ प्राप्ति के लिये बना है इसके अतिरिक्त कुछ नहीँ ।

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