मेँ अपने मन का दास कलम का कर्मचारी हुँ जो मन मेँ आया लिखदिया । कोई पागल कहे तो मुझे क्या ? कहता है तो कहने दो ।।
ब्लॉग आर्काइव
मंगलवार, 30 जुलाई 2013
धर्म कर्तव्य और नास्तिकता ।।
खुद को नास्तिक कह देने भर से कोइ अपने धार्मिक कर्तव्योँ से मुक्त नहीँ हो जाता ।कर्म तो जानवर भी करते करते मरजाते है पर उन्हे मोक्ष नहीँ मिल पाता ।। कौन कह रहा है मंदिर जाओ ? मन मंदिर मेँ भी भगवान वसते है । उनसे कभी तो मिला के आओ ।। भले न आता हो आरती गाना, उनके नाम जप मेँ ही इतने शक्ति है वो चांद वन तेरे हात मेँ गिर जायेगेँ ।।उतना भी न कर सको तो मन मेँ स्मरण कर लो । वो सबकि सुनते है । (जय महाकाल)
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