मेँ अपने मन का दास कलम का कर्मचारी हुँ जो मन मेँ आया लिखदिया । कोई पागल कहे तो मुझे क्या ? कहता है तो कहने दो ।।
ब्लॉग आर्काइव
शनिवार, 10 अगस्त 2013
धर्म और राजनीति 1
जो लोग यह कहकर पल्ला झाड लेते है मुझे राजनीति और धर्म से कोई सरोकार नहीँ मुझे लगता है ईनसे बढ़कर बेवस और लाचार कोइ और नहीँ है । धर्म के द्वारा मनुष्य एक जीवन जीं सकता है ।और उसको अपने अधिकार प्राप्त करने के लिये राजनीति का ज्ञान भी होना चाहिये । इन दोनोँ के विना मनुष्य जीवन का क्या अर्थ निकलते है ? केवल मात्र एक यन्त्र कि तरह पैसा कमाते कमाते मर जाओ । धर्म के प्रति लोगोँ का आस्ता डगमगाने लगा है ।उन्हे लगता है धर्म राजनीति का एक अंश हे और हमेँ ऐसे तत्वोँ से दुर रहना है । परंतु सत्य तो यह हे राजनीति धर्म का ही एक नगन्य अंश हे जो आज दुषित होने लगा हे । कमजोर इनसान क्या युद्ध करगेँ ? यह तो मरने के लिये डरेगेँ ।
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