ब्लॉग आर्काइव

गुरुवार, 29 अगस्त 2013

हम कितने सहनशील ?

कभी उबले मेंडक की कहानी सुनी है? नहीँ !!! चलो मेँ सुना देता हुँ । अगर आप एक मेढंक को उबलते पानी में डाले तो वह तुरंत अपनी सुरक्षा के लिए कूद कर निकल जायेगा। परंतु यदि आप एक मेढंक को पानी मेँ रखे और पानी का तापमान धीरे-धीरे बढाये तो मेंढक उसका आदी हो जायेगा और उसको यह पता ही नहीं चलेगा की पानी का तापमान खतरे से ऊँचा हो गया है और वह ख़त्म हो जायेगा।
क्या हम लोग भारत मे उबले मेंडक जैसे नहीँ हैं ? हाँ । सायद !! हम कुछ भी सह सकते हे भले कोई हमारे आगे हमारे धरती मा को लुट ना ले । यहाँ इस भारत मेँ हर दिन लाखो करोडो के नए नए घोटालो के पर्दाफाश होने से अब हमे कोई हैरानी नहीं होती । हम इतने वेशर्म हो गये है बेवश बेसाहारा महिला और छोटी बच्चियो के संग भी दुश्कर्म करने से कतराते नहीँ ? मुंबई बलात्कार की घटना पुरानी भी नहीं हुई कि झारखण्ड राज्य के बुंडू में नौवीं कक्षा की छात्रा के साथ सात दरिंदों ने बलात्कार किया ।
हम भ्रस्टाचार के, अपराध के और बुरे प्रशासन के इतने आदी हो गए है कि अब हम परवाह ही नहीं करते, साफ और अच्छा प्रशासन जो कि हमारामूलभूत अधिकार है उसकी हम नेताओ से अब मांग ही नहीं करते । दोस्तों, हम लोग अपने आप को एक निराशाजनक भाग्य पर नहीं छोड़ सकते है. हमे जड़ता की भारी जंजीरों को फेंकना होगा, अपनी आवाज को बदलाव की और आवाजो के संग मे जोड़ना होगा, तभी इस देश कि हालत सुधर सकेगी ।।

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