पराधीन भारत मेँ मुस्लिम लिग भारत के लिये आस्तिन के साँप जैसा था । कट्टरवादी मुस्लिम इस संस्था या दल को अपने हितैशी समझने लगे च्युँकि ये लोग हमेशा से हिन्दु स्वार्थ के खिलाफ बोलते थे ।
इसी क्रम मेँ मुस्लिम लीग नेँ हिन्दीभाषा पर अंकुश लगाना शुरुकरदिया । लीग हिन्दी को हिन्दु आधिपत्य का प्रतिक मानने लगी । लीग ने यहाँतक कहदिया कि अगर कंग्रेस उर्दु को राष्ट्रभाषा के तौर पर मान्यता देगा तो हम कंग्रेस को साहयता करेगेँ । सभी कट्टरवादी नेताओँ नेँ उर्दु के सम्मान मेँ नया कहावत या मुहावरा बना लिया था "ये उर्दु का जनाजा है जरा शान से निकालेँ" । हिँदी के विरोध मेँ ये लोग उर्दु के नामपर समाजिक दिवार खड़ाकरने कि कोशिश करने मेँ लगगये थे । जबकि हकीकत यह था कि उर्दु फार्सी भाषा से प्रभावित हिन्दी थी , उर्दु हिन्दु या मुसलमानोँ कि अधिकार कि चीज नहीँ है । उर्दु शायरोँ कि नजाकत एबं नफासत भरी शैली को पल्लवित और पुष्पित करने के लिये हिन्दु विद्वानोँ नेँ खुब खुब सहयोग दिया था । वहीँ कई मुस्लिम लेखकोँने अपने कृतिओँ मेँ संस्कृत निष्ठ
हिन्दी का उपयोग किया था । इस भाषाई लढ़ाई मेँ एकबार फिर कंग्रेस को झुकना पड़ा । समझौता हुआ हिन्दी एबं उर्दु के शब्द भंडार को मिलाकर हिन्दोस्तानी नामक एक नयी दोगली खिचड़ी माषा का प्रस्ताव रखागया और कंग्रेस नेँ इसे स्वीकार करलिया ।
माध्यम गर वर्णसंकर बनजाय तो फिर इस माध्यम के द्वारा दियाजानेवाला निज संस्कृति का परिचय भी दूषित हो जाता है ।
बालकोँ के लिये नवकल्पित
हिन्दोस्तानी पाठ्यपुस्तकोँ मेँ श्रीराम ,वादशाह राम बनगये और सीताजी वेगम सीता कहलायी । लक्षण शाहजादा लक्षण एबं मुनि वसिष्ठ मौलाना वसिष्ठ बनादिये गये । हिन्दी को विकलांग बनाने कि कोशिश मेँ लीग लगभग सफल हो गया पर ऐसा करते हुए उसने अनजाने मेँ RSS नामक राष्ट्रवादी संघ के जन्म का कारक बना । वो बच्चे जो इन पाठ्यपुस्तकोँ के बदलने पर परेशान थे आगे चलकर उनसभी नेँ मिलकर राष्ट्रिय स्वयं सहायक संघ बनाया और आजतक इन दोगले लोगोँ के फिलाफ लढ़ रहे है ।
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