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शनिवार, 28 मार्च 2015

नेहरु का पंचशील नीति विफल होना भारत को भारी पड़गया ।

नेहरू चीन से दोस्ती के लिए बहुत ज्यादा उत्सुक थे । वे चीन को खुश करने के लिए
कई तरह के उपाय कर रहे थे । नेहरू ने 1953 में अमेरिका की उस पेशकश को ठुकरा
दिया था, जिसमें भारत से सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के तौर पर शामिल होने
को कहा गया था । इसकी जगह नेहरू ने चीन को सुरक्षा परिषद में शामिल करने की
सलाह दे डाली थी । अगर नेहरू ने उस पेशकश को स्वीकार कर लिया होता तो कई दशकों
पहले भारत सामरिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहद मजबूत देश के तौर पर उभर
चुका होता । आज भारत को सुरक्षा परिसद मेँ स्थायी सदस्यता के लिये कभी अमेरिका तो कभी G समूह राष्ट्र तथा युरोपियन राष्ट्रोँ को मनवाना पड़रहा है और यह अत्यन्त दूर्भाग्यपूर्ण है । हालांकि
नेहरू चीन की शातिराना चालों को पढ़ने में नाकाम रहे । उनके ज्यादातर मंत्री अयोग्य थे और इस बात को बिके मेनन जैसे रक्षामंत्री के भारतीय शस्त्रागारोँ को बंदकरने ,भारत चीन सीमा सेना वापस लाने जैसी आदेश देने से प्रमाणित होता है । चीन के साथ विवादों को
सुलझाने के लिए भले नेहरुने 'पंचशील' समझौते के तहत तिब्बत पर चीन के हक को
मंजूरी भी दी थी पर नेहरू का चीन पर भरोसा भारत पर बहुत भारी पड़ा । 1962
में चीन ने भारत पर हमला बोल दिया । आज़ादी के बाद भारत आज तक सिर्फ एक लड़ाई
हारा है । यह वही जंग थी, जिसमें भारत को नीचा देखना पड़ा। नेहरू का हिंदी चीनी
भाई-भाई का नारा किसी काम न आया और चीन के साथ जंग में बड़ी संख्या में भारत
ने अपने वीर सपूत खोए । कितने हि माताओँ बहनोँ ने नापाप्रदेश मेँ अपना इज्जत गबाया । आखिर मेँ शेषभारत के नारीओँ ने जब देखा भारत हार रहा है ,उन्होने अपने अभूषणोँ को सरकार को दान दिया ताकी उस सोने के बदोलौत भार गोलावारुद खरिद सके । भारत के पलटवार से चीन को समझ आया कि भारतीय झुकनेवाले नहीँ है वो आखरी दमतक लढ़ेगेँ । तब अंतराष्ट्रिय दवाब के आगे झुककर चीन नेँ युद्ध खत्म कि घोषणा यह करते हुए कि की तिबत्त और बाकी जीतेगये हिस्से पर अब उसका कब्जा है और भारत के इस कमजोर प्रधानमंत्री ने वजाय लढ़ने के इसे स्विकार कर लिया तब जब हमारे सैनिक जीत रहे थे । 1954 से चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने
तिब्बत में अपने विस्तार का जो सिलसिला शुरू किया, वह आज भी जारी है । दुनिया की छत कहे जाने वाले तिब्बत में चीन के खिलाफ आंदोलन आज भी चल रहा है।
तिब्बत में चीन के पांव पसारने का नतीजा यह हुआ है कि आज उसके हौसले बुलंद हैं
और वह न सिर्फ गाहे ब गाहे वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन कर रहा है बल्कि
अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा बताता है। नेहरू की वह गलती आज
भारत पर बहुत भारी पड़ रही है और भारत को चाहिये की वो चीन जैसे दोगले देशोँ को उन्ही के अंदाज मेँ जवाब देँ तब इनके अक्ल ठिकाने आयेगी ।

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