एड़ोल्फ हिटलर बालपन मेँ अत्यन्त अंतर्मुखी थे ,पढ़ाइलिखाई मेँ कमजोर हिटलर का हमेशा स्कुलमेँ मजाक उड़ाया जाता था । व्यक्तिगत जीवन के बारे मेँ प्रायः एडलोफ हिटलर आजीवन चुप रहे परंतु उनके मिजाजी सरमुखत्यार छबि दृढ़ बनने से पहले 1923 मेँ ज्योर्ज सिल्वेस्टर नामके एक अमरिकन पत्रकार को एक साक्षातकार दिया था ।
1923 मेँ जब जर्मनी प्रथम विश्वयुद्ध कि पेनाल्टी भरभर कर थकचुका था और राष्ट्रिय राजनीतिमेँ हिटलार का कोई बृहत्त क्षमता न था ऐसे हालातोँ मेँ भी हिटव दुनिया पर राज करने की हुँकार कर रहे थे । जब पत्रकारोँ ने उनके एतादृश आत्मविश्वास कारण पुछा तो हिटलर नेँ एक किस्सा सुनाते हुए कहा
"बाल्यकाल से ही मेँ अलगथलग रहाकरता था स्कुल मेँ मारे IQ का मजाक उडाया जाता था तब मेरी उदासी दूर करने के लिये मेरी माँ मुझे कहानी शुनाया करती घोड़े पर चढ़कर लढ़नेवाला राजकुमार राक्षसोँ को मारनेवाला देवता आदी कहानी मेँ पात्र व कथानक बदलजाते थे परंतु उन कहानीओँ मेँ हिरो का नाम हमेशा एडोल्फ ही होता था !!!"
हिटलर का कठिन चुनौतिओँ के आगे लढ़ते रहनेवाली जुनुन कहाँ से आया था आप समझगये होगेँ ।
हिटलर की माता आखरी दिनोँ मेँ विमार व मशरुफ हो गयी थी ।
एडलोफ हिटलर की माता ब्रेस्ट कैँसर से पीडित थीँ और इसके निदान के लिये पर्याप्त धन घर मेँ न था । एडलोफ नेँ अपनी माता को तड़पता हुआ नजदिक से देखा था उन्होने निकट मेँ रह रहे एक डॉक्टर को अपनी माता को बचाने की गुहार करने लगे तो वो डॉक्टर एडवाँस मे पैसा माँगने लगा । मुस्किलोँ के इन दिनोँ मेँ कई दोस्तोँ ने उनका साथ छोड़दिया था उनमेँ से ज्यादातर JEWS थे ।
जर्मनी के कर्ताधर्ता बनने के पश्चात यहुदीओँ से वैर का एक कारण इहुदी मित्र और डोक्टर भी थे जिन्होने मुस्किलोँ के वक्त उनका हाथ छोड़दिया था । माता का बत्सल्य पुत्रको पराक्रम करने के लिये प्रेरित करता है और माता के साथ हुए दूर्वव्यवहार का खुन्नस की चरमसीमा पर भी पहँचसकता है
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