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बुधवार, 21 मई 2025

शिशिफस और त्रिशंकु: मानवीय आकांक्षा और अर्थहीनता का दार्शनिक संमिलन

होमर की ओडिसी के दसवें खंड के अनुसार, जादूगरनी सर्सी (Circe) ने ओडिसियस को सलाह दी थी कि उसे अपने घर इथाका लौटने के लिए पाताल लोक की यात्रा कर मृत भविष्यवक्ता टायरेसियस से मिलना होगा। ओडिसियस ने पाताल लोक में जाकर शिशिफस को अनंत काल तक एक पत्थर को पहाड़ पर चढ़ाते हुए देखा था। होमर की *ओडिसी* में शिशिफस की कहानी का संक्षेप में वर्णन किया गया है, जिसे बाद में अन्य ग्रीक पौराणिक कथाओं में विस्तार से उल्लेख किया गया।

शिशिफस की कहानी ग्रीक पौराणिक कथाओं का एक अनूठा अध्याय है, जो मानव जीवन की अर्थहीनता और संघर्ष को गहरे दार्शनिक तत्वों के साथ प्रस्तुत करती है। शिशिफस कोरिंथ के राजा थे, चतुर और बुद्धिमान, लेकिन अहंकारी। उनकी चालाकी देवताओं को भी आश्चर्यचकित करती थी, किंतु उनका अहंकार उन्हें विपत्ति में डाल देता था। जब देवताओं के बीच विवाद हुआ, तो शिशिफस ने इसमें हस्तक्षेप कर दंडित हुए। ग्रीक पौराणिक कथाओं के अनुसार, नदियों के देवता आसोपस की पुत्री ऐगिना अत्यंत सुंदर थी। ज़ीउस, उसकी सुंदरता से मोहित होकर, उसे अपहरण कर ओइनोन नामक द्वीप पर ले गए (जो बाद में ऐगिना के नाम से प्रसिद्ध हुआ)। वहाँ ज़ीउस ने ऐगिना के साथ संबंध स्थापित किया, जिसके फलस्वरूप ऐआकस (Aeacus) का जन्म हुआ, जो बाद में ऐगिना द्वीप का राजा बना। आसोपस, अपनी पुत्री के अपहरण की बात जानकर क्रुद्ध हुए और ज़ीउस का सामना करने की कोशिश की। लेकिन ज़ीउस ने उन्हें वज्रपात से परास्त कर नदी में वापस भेज दिया। इस घटना में कोरिंथ के राजा शिशिफस ने आसोपस को ज़ीउस के कार्यों की जानकारी दी थी। ज़ीउस इससे क्रुद्ध होकर शिशिफस को दंड देने के लिए मृत्यु के देवता थानाटोस को भेजा, किंतु शिशिफस ने चालाकी से थानाटोस को बंधन में बाँधकर मृत्यु को धोखा दे दिया।


इससे ज़ीउस और भी क्रुद्ध हुए, और अंततः शिशिफस को पाताल में अनंत काल तक दंड भोगने की सजा दी गई। यह दंड था एक विशाल पत्थर को पहाड़ की चोटी तक धकेलना, जो हर बार चोटी के पास पहुँचने पर नीचे लुढ़क जाता था। यह अर्थहीन और अनंत कार्य शिशिफस का चिरस्थायी दंड बन गया। शिशिफस प्रतिदिन पत्थर को धकेलते, थकते, हताश होते, लेकिन इस कार्य से मुक्त नहीं हो पाते थे।

आधुनिक दार्शनिक अल्बेयर कामू ने अपनी पुस्तक The Myth of Sisyphus में इस कहानी को मानव जीवन की अर्थहीनता का प्रतीक बताया, लेकिन उन्होंने एक आशावादी दृष्टिकोण देते हुए कहा कि शिशिफस ने अपनी सजा को स्वीकार कर लिया और इसमें जीवन का मूल्य समझा। वे हर बार अलग-अलग तरीके से पत्थर धकेलते हुए, इस दंड में भी सुख की प्राप्ति करते हैं। यह कहानी जीवन की निरर्थकता (absurdity) और उसमें अर्थ सृजित करने की क्षमता को उजागर करती है। जीवन में कई कार्य अर्थहीन लग सकते हैं, फिर भी मनुष्य उन्हें करता रहता है। इस निरर्थकता को स्वीकार कर, उत्साह और स्वतंत्रता के साथ जीवन जीने की प्रवृत्ति को कामू सबसे तर्कसंगत विकल्प मानते हैं।

रोजमर्रा के जीवन में, मनुष्य अनिश्चित लक्ष्यों के लिए श्रम करता है, जैसे अंतहीन काम, सफलता या सुख की खोज। लेकिन अंत में मृत्यु के दर्शन मात्र से उसके सभी कार्य अर्थहीन प्रतीत हो सकते हैं। वास्तव में, हमारा जीवन ही शिशिफस के पत्थर धकेलने जैसा है। हम प्रतिदिन पत्थर धकेलने जैसे अर्थहीन कार्य करते हैं, और हमारी मृत्यु उन सभी कार्यों का अंतिम परिणाम होती है। शिशिफस की कहानी एक रूपक (metaphor) है, जो अर्थहीन श्रम के माध्यम से जीवन की निरर्थकता को चित्रित करती है। लेकिन कामू कहते हैं कि शिशिफस इसे स्वीकार कर अपने भाग्य को अपनाते हैं, जो एक प्रकार का विद्रोह और स्वतंत्रता है।

भारतीय कथाओं में त्रिशंकु की कहानी शिशिफस की कहानी के साथ कुछ समानताएँ रखती है।

वाल्मीकि रामायण के बालकांड में त्रिशंकु की कहानी वर्णित है। त्रिशंकु इक्ष्वाकु वंश के एक राजा थे, जिनकी असाधारण इच्छा थी सशरीर स्वर्गारोहण। यह इच्छा धर्म और प्रकृति के नियमों के विरुद्ध थी। त्रिशंकु ने अपने राजगुरु वशिष्ठ से इस इच्छा को पूरा करने का अनुरोध किया, लेकिन वशिष्ठ ने इसे असंभव और अधार्मिक कहकर मना कर दिया। इससे क्रुद्ध होकर त्रिशंकु ने वशिष्ठ का अपमान किया, जिसके फलस्वरूप वशिष्ठ ने उन्हें शाप दे दिया। त्रिशंकु ने तब ऋषि विश्वामित्र की शरण ली, जो वशिष्ठ से घृणा करते थे। विश्वामित्र ने एक महान यज्ञ आयोजित कर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेजने की कोशिश की। विश्वामित्र की तपःशक्ति से त्रिशंकु स्वर्ग की ओर बढ़े, लेकिन देवराज इंद्र ने उन्हें स्वर्ग से नीचे धकेल दिया, क्योंकि कोई भी मनुष्य सशरीर स्वर्ग में नहीं रह सकता। त्रिशंकु को पृथ्वी की ओर गिरते देख विश्वामित्र ने अपनी शक्ति से उन्हें बीच में ही रोक लिया और उनके लिए एक नया स्वर्ग (त्रिशंकु स्वर्ग) सृजित करने लगे। अंत में, देवताओं के साथ समझौता हुआ, और त्रिशंकु स्वर्ग और पृथ्वी के बीच एक अवस्था में रह गए। कुछ वर्णनों के अनुसार, वे एक तारामंडल में परिवर्तित हो गए, जो त्रिशंकु के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह कहानी मानवीय आकांक्षा की असीमता और प्रकृति की सीमाओं के बीच संघर्ष को दर्शाती है।


शिशिफस और त्रिशंकु की कहानियाँ, यद्यपि अलग-अलग सांस्कृतिक परंपराओं से उत्पन्न हुई हैं, कुछ गहरे दार्शनिक समानताएँ और असमानताएँ दर्शाती हैं। दोनों ने असंभव आकांक्षाओं का पीछा किया—शिशिफस ने मृत्यु को धोखा देना चाहा, और त्रिशंकु ने सशरीर स्वर्गारोहण की कोशिश की। इस अहंकार और असाधारण इच्छा ने दोनों को दुरदशा में डाला। दोनों एक चिरस्थायी असंपूर्णता में बंध गए—शिशिफस अनंत काल तक पत्थर धकेलते रहे, और त्रिशंकु स्वर्ग और पृथ्वी के बीच अनंत काल तक अटक गए। दोनों ने दैवी शक्तियों का विरोध किया—शिशिफस ने ज़ीउस के और त्रिशंकु ने इंद्र के नियमों को चुनौती दी। शिशिफस की कहानी से जीवन की अर्थहीनता और उसमें अर्थ सृजित करने की सीख मिलती है, जबकि त्रिशंकु की कहानी अत्यधिक इच्छा के परिणाम और धर्म के संतुलन की शिक्षा देती है। लेकिन दोनों कहानियों में असमानताएँ भी हैं। शिशिफस की सजा अर्थहीन और अनंत है, जहाँ मुक्ति की कोई संभावना नहीं है, जबकि त्रिशंकु की कहानी में एक समझौता और आंशिक सफलता है। शिशिफस का संघर्ष शारीरिक और अनंत है, जबकि त्रिशंकु का संघर्ष आध्यात्मिक और आकांक्षाभित्तिक है, जहाँ एक निश्चित अवस्था प्राप्त हुई। ग्रीक त्रासदी में शिशिफस की कहानी अहंकार और सजा पर जोर देती है, जबकि त्रिशंकु की कहानी भारतीय परंपरा में कर्म और धर्म के महत्व को दर्शाती है।

ये दोनों कहानियाँ आदि शंकराचार्य के भजगोविंदम् के श्लोक से गहरे रूप से संबंधित हैं। शंकराचार्य कहते हैं:

"दिनयामिन्यौ सायं प्रातः शिशिरवसन्तौ पुनरायातः।  
कालः क्रीडति गच्छत्यायुः तदपि न मुञ्चत्याशावायुः ॥"

अर्थात् दिन और रात, संध्या और प्रभात, शीत और वसंत बार-बार आते और चले जाते हैं; समय चक्र की तरह खेलता है और उस चक्रगति में जीवन की आयु क्षय होती है, फिर भी मनुष्य की आशा और इच्छा की हवा (आसक्ति) उसे छोड़ती नहीं। यह जीवन की नश्वरता और आसक्ति की निरर्थकता पर प्रकाश डालता है।

शिशिफस का अहंकार और मृत्यु को धोखा देने की इच्छा, त्रिशंकु की देह सहित स्वर्ग प्राप्ति की आकांक्षा—दोनों इस श्लोक में वर्णित “आशावायुः” (आशा या आसक्ति की हवा) के उदाहरण हैं। शिशिफस का अनंत संघर्ष और त्रिशंकु की असंपूर्ण आकांक्षा समय की अविराम गति और जीवन की क्षणभंगुर प्रकृति को दर्शाती हैं, जैसा कि श्लोक में “कालः क्रीडति गच्छत्यायुः” के माध्यम से वर्णित है। भजगोविंदम् का यह श्लोक दोनों कहानियों को एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से व्याख्या करता है, जहाँ अत्यधिक आसक्ति मनुष्य को मुक्ति या आत्मज्ञान से दूर रखती है। शिशिफस और त्रिशंकु की दुरदशा स्पष्ट करती है कि असीम इच्छाएँ मनुष्य को अनंत बंधन में बाँध सकती हैं, और भजगोविंदम् के इस श्लोक के संदेश के अनुसार, इस आसक्ति को त्यागकर ईश्वर भजन और आत्मज्ञान में जीवन का अर्थ खोजना चाहिए।

शिशिफस और त्रिशंकु की कहानियाँ, यद्यपि अलग-अलग सांस्कृतिक परंपराओं से उत्पन्न, मानवीय आकांक्षा की असीमता और प्रकृति की सीमाओं के बीच संघर्ष को दर्शाती हैं। दोनों कहानियाँ दैवी शक्तियों के विरुद्ध मनुष्य के अहंकार और असंभव इच्छाओं के परिणाम को दिखाती हैं। शिशिफस का अनंत श्रम जीवन की अर्थहीनता का प्रतीक है, जबकि त्रिशंकु का असंपूर्ण स्वर्गारोहण धर्म और कर्म के संतुलन को उजागर करता है। आदि शंकराचार्य का भजगोविंदम् का श्लोक इन दोनों कहानियों को एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से जोड़ता है, जहाँ जीवन की नश्वरता और आसक्ति की निरर्थकता को स्वीकार कर ईश्वर भजन और आत्मज्ञान के माध्यम से मुक्ति का मार्ग खोजने की सलाह दी गई है। ये कहानियाँ हमें सिखाती हैं कि अत्यधिक आसक्ति मनुष्य को अनंत बंधन में बाँध सकती है, लेकिन जीवन की निरर्थकता को स्वीकार कर भी अर्थ और स्वतंत्रता की खोज की जा सकती है।

(जादूगरनी सर्सी(Circe) के चरित्र से प्रेरित होकर मार्वल कॉमिक्स में एक चरित्र Sersi बनाया गया है। मार्वल कॉमिक्स के अनुसार, यह जादूगरनी होमर से मिली थी और ओडिसियस की सहायता की थी।)

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