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मंगलवार, 27 मई 2025

हाथ से खाना खाना क्या छोटेपन की निशानी है?

भारतीय उपमहाद्वीप, मध्य पूर्व, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के अधिकांश लोग अपने हाथों से भोजन करते हैं। लगभग 120 करोड़ लोग चॉपस्टिक या लकड़ी की दो छड़ियों से भोजन करते हैं। करीब 150 करोड़ लोग चाकू, चम्मच और कांटे का उपयोग भी करते हैं। चीन के लोग चॉपस्टिक से भोजन करते हैं, जिसके लिए हर साल लगभग 3.8 मिलियन पेड़ काटे जाते हैं ताकि 5700 करोड़ चॉपस्टिक जोड़े बनाए जा सकें।

चाकू, कांटा और चम्मच बनाने के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषक गैसें वायुमंडल में मिलती हैं, जिससे वायु प्रदूषण होता है। अगर इन्हें अच्छे से साफ न किया जाए, तो ये रोगों के वाहक बन सकते हैं।


आजकल प्लास्टिक चम्मच का निर्माण बढ़ गया है। हर साल 4000 करोड़ प्लास्टिक चम्मच, कांटे और चाकू बनाए जाते हैं, जिन्हें एक या दो बार उपयोग के बाद फेंक दिया जाता है। इस तरह का प्लास्टिक आसानी से नष्ट नहीं होता और इसके निर्माण के दौरान भी वायु प्रदूषण होता है। प्लास्टिक चम्मच के कारण लीवर और किडनी संबंधी रोगों की संभावना बढ़ जाती है।

भारत में प्राचीन काल से लोग हाथ से भोजन करते आ रहे हैं। भारतीय शास्त्रों में स्वच्छ हाथों से भोजन करने को महत्व दिया गया है। मां के हाथ से भोजन करना कितना महत्वपूर्ण है, इसका उल्लेख शास्त्रों में है:

“तिलकं विप्र हस्तेन,  
मातृ हस्तेन भोजनम्।  
पिण्डं पुत्र हस्तेन,  
न भविष्यति पुनः पुनः।”

प्राचीन काल से मनुष्य हाथ से भोजन करते आ रहे हैं। यह सबसे पुरानी परंपरा है, और केवल मनुष्य ही नहीं, पृथ्वी के अधिकांश जीव अपने हाथों से ही भोजन करते हैं।

भारत में लोग हाथ से भोजन करके न तो पर्यावरण प्रदूषित करते हैं और न ही इसके कारण हर साल करोड़ों पेड़ कटते हैं। इसलिए, हाथ से भोजन करना गंदा, असभ्य या हल्की बात नहीं है। बल्कि, इससे आप वायु प्रदूषण, मिट्टी प्रदूषण और पेड़ों की कटाई से बचते हैं, साथ ही प्लास्टिक चम्मच का उपयोग करके किडनी और लीवर संबंधी कई रोगों से भी सुरक्षित रहते हैं।

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