भारतीय पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्मा का जीवनकाल 100 वर्ष है, जो मानव वर्षों में 311.04 लाख करोड़ (311,040,000,000,000) वर्ष के बराबर है। मनुस्मृति में इस संबंध में कहा गया है:
“यदा स देवो जागर्ति तदेदं चेष्टति जगत्।
यदा स्वपिति शान्तात्मा तदा सर्वं निमीलति ॥”
अर्थात, जब वह देवता (ब्रह्मा) जागृत होते हैं, तब यह विश्व सक्रिय हो जाता है। जब वह शांतचित्त होकर निद्रा में जाते हैं, तब सब कुछ स्थिर हो जाता है।
इसी तरह, सूर्य सिद्धांत में उल्लेख है कि ब्रह्मा का आयुष्काल 100 ब्रह्मा वर्ष (311.04 ट्रिलियन मानव वर्ष) है, और वर्तमान में उनके आयुष्काल का दूसरा अर्ध (50वां वर्ष) चल रहा है, जिसमें पहला कल्प प्रारंभ हुआ है:
“परमायुः शतं तस्य तथाहोरात्रसंख्यया।
आयुषोऽर्धमितं तस्य शेषकल्पोऽयमादिमः ॥”
ब्रह्मा का एक दिन एक कल्प कहलाता है, जो लगभग 432 करोड़ वर्ष का होता है, और उनकी एक रात (प्रलय) भी समान अवधि की होती है। एक कल्प में 14 मन्वंतर होते हैं, जिनमें प्रत्येक में 71 महायुग (43,20,000 वर्ष) शामिल होते हैं।
सूर्य सिद्धांत (रंगनाथ टीका) में कहा गया है:
“इत्थं युगसहस्रेण भूतसंहारकारकः।
कल्पो ब्राह्ममहः प्रोक्तं शर्वरी तस्य तावती ॥”
अर्थात, इस प्रकार एक हजार युगों (चतुर्युग) से निर्मित एक कल्प, जो जीवों के संहार का कारण है, ब्रह्मा का दिन (अहः) कहलाता है। उनकी रात (शर्वरी) भी उतनी ही अवधि की होती है।
प्रत्येक महायुग चार युगों में विभक्त है: •सत्ययुग(17,28,000 वर्ष)
•त्रेतायुग(12,96,000 वर्ष)
•द्वापरयुग(8,64,000 वर्ष)
•कलियुग(4,32,000 वर्ष)।
वर्तमान में हम श्वेतवराह कल्प के सातवें मन्वंतर के 28वें महायुग के कलियुग में हैं, जो 3102 ई.पू. में शुरू हुआ था। 2025 ई. के अनुसार, कलियुग के 5126 वर्ष बीत चुके हैं। श्वेतवराह कल्प ब्रह्मा के जीवनकाल के 51वें वर्ष का पहला दिन है। यह गणना विश्व को एक चक्रीय, अनंत प्रक्रिया के रूप में दर्शाती है, जिसमें सृष्टि, स्थिति और प्रलय का चक्र चलता रहता है।
आधुनिक विज्ञान ब्रह्मांड की आयु को बिग बैंग सिद्धांत के आधार पर मापता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, ब्रह्मांड की उत्पत्ति लगभग 13.8 बिलियन (13,800,000,000) वर्ष पहले हुई थी। यह गणना कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड रेडिएशन, हबल स्थिरांक, और तारों तथा गैलेक्सियों की आयु के आधार पर की गई है। ब्रह्मांड का भविष्य डार्क एनर्जी से प्रभावित है, जो इसके विस्तार को त्वरित कर रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार, ब्रह्मांड अनिश्चित काल तक विस्तार करता रहेगा, जिसके परिणामस्वरूप "बिग फ्रीज" या "हीट डेथ" की स्थिति आएगी, जिसमें ब्रह्मांड ठंडा और निष्क्रिय हो जाएगा। यह प्रक्रिया ट्रिलियन-ट्रिलियन (10^24) वर्ष या उससे अधिक समय ले सकती है। ब्लैक होल्स हॉकिंग रेडिएशन के माध्यम से 10^100 वर्ष (गूगोल वर्ष) में वाष्पित हो जाएंगे। अन्य संभावनाएं जैसे "बिग क्रंच" (संकोचन) या "बिग रिप" भी हैं, लेकिन डार्क एनर्जी के प्रभाव के कारण "बिग फ्रीज" सबसे संभावित है।
पौराणिक गणना चक्रीय समय की अवधारणा पर आधारित है, जिसमें सृष्टि और प्रलय बार-बार होते हैं। यह दार्शनिक और आध्यात्मिक है, जो ब्रह्मा के दैवीय चक्र पर जोर देता है। वहीं, आधुनिक विज्ञान रैखिक समय की अवधारणा पर आधारित है, जिसमें बिग बैंग से शुरू होकर ब्रह्मांड एक निश्चित दिशा में बढ़ता है। पौराणिक गणना में ब्रह्मा का जीवनकाल (311.04 ट्रिलियन वर्ष) विज्ञान की वर्तमान आयु (13.8 बिलियन वर्ष) की तुलना में विशाल है, लेकिन विज्ञान का भविष्यकाल (10^100 वर्ष) पौराणिक समय से भी अधिक है। पौराणिक गणना समय को अनंत चक्र के रूप में देखती है, जबकि विज्ञान एक सीमित शुरुआत और अनिश्चित अंत पर जोर देता है।
भारत के अलावा, किसी भी प्राचीन सभ्यता में इतने विशाल पैमाने पर समय की गणना नहीं की गई। चीन और मिस्र की सभ्यताओं में राजवंशों के शासनकाल के आधार पर युगों की गणना होती थी। अन्य प्राचीन संस्कृतियों में भारत की तरह चतुर्युग की अवधारणा नहीं थी।
भारतीय कालगणना के बहुत बाद, प्राचीन ग्रीक कवि हेसिओड ने 8वीं शताब्दी ई.पू. में अपनी रचना Ἔργα καὶ Ἡμέραι (एर्गा कै हेमेराई) में मानव इतिहास को पांच युगों में विभाजित किया। उनके अनुसार:
1.स्वर्ण युग (Golden Age): शांति और समृद्धि का समय।
2.रजत युग (Silver Age): नैतिकता में कमी।
3.कांस्य युग (Bronze Age): युद्ध और हिंसा का युग।
4.वीर युग (Heroic Age): महान वीरों का समय, जिसमें ट्रोजन युद्ध हुआ।
5.लौह युग (Iron Age): अधर्म और दुख का युग।
यह युग विभाजन भी पौराणिक और दार्शनिक था, जिसमें धातुओं के उपयोग के साथ नैतिकता और सामाजिक स्थिति का वर्णन किया गया।
कई वर्षों बाद, डेनिश पुरातत्वविद क्रिस्टियन जुरगेनसेन थॉमसन ने 1836 में अपनी पुस्तक Ledetraad til Nordisk Oldkyndighed (Guide to Northern Antiquities) में तीन-युग प्रणाली प्रस्तुत की। उन्होंने मानव इतिहास को तीन युगों में विभाजित किया:
1.पाषाण युग (Stone Age):मानव पत्थर से उपकरण और हथियार बनाते थे (लगभग 25 लाख वर्ष पहले से 3000 ई.पू. तक), जिसे पुनः पुरापाषाण (Paleolithic), मध्यपाषाण (Mesolithic), और नवपाषाण (Neolithic) में विभाजित किया गया।
2.कांस्य युग (Bronze Age):तांबे और टिन के मिश्रण से कांस्य उपकरण बनाए गए (लगभग 3000 ई.पू. से 1200 ई.पू. तक)।
3.लौह युग (Iron Age): लोहे से हथियार और उपकरण बनाए गए (लगभग 1200 ई.पू. से ऐतिहासिक युग तक)।
इस प्रणाली को बाद में अन्य पुरातत्वविदों ने विस्तारित किया, और यह विश्व भर में प्राचीन इतिहास के अध्ययन का आधार बनी। लौह युग के बाद मानव इतिहास को शास्त्रीय युग, मध्ययुग, आधुनिक युग, और वर्तमान डिजिटल युग या सूचना युग में विभाजित किया गया।
आधुनिक विज्ञान ने पृथ्वी की आयु को चार युगों में विभाजित किया है, जो लगभग 4540 मिलियन वर्ष पहले सूर्य के प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क से बनी पृथ्वी से शुरू होती है:
1.हेडियन युग (Hadean, 4540 से 4000 मिलियन वर्ष पहले)
2.आर्कियन युग (Archean, 4000 से 2500 मिलियन वर्ष पहले)
3.प्रोटेरोज़ोइक युग (Proterozoic, 2500 से 538.8 मिलियन वर्ष पहले)
4.फैनरोज़ोइक युग (Phanerozoic, 538.8 मिलियन वर्ष पहले से वर्तमान तक)
हेडियन युग पृथ्वी का सबसे प्राचीन भूवैज्ञानिक युग है। यह पृथ्वी के गठन और प्रारंभिक विकास का एक नाटकीय अध्याय था, जब पृथ्वी एक अग्निमय, अस्थिर और जीवन के लिए अनुपयुक्त अवस्था में थी। "हेडियन" नाम ग्रीक पौराणिक कथाओं से लिया गया है, जिसका अर्थ "नरक जैसा" परिवेश है। इस युग का नामकरण 1972 में भूवैज्ञानिक प्रेस्टन क्लाउड द्वारा किया गया। हेडियन युग में कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटीं, जिन्होंने पृथ्वी को जीवन योग्य ग्रह बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
सूर्य को घेरने वाली प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क में धूल और गैस के कणों के आपसी टकराव और संयोजन (Accretion) से पृथ्वी बनी। यह एक गलित अग्निगोला थी, जिसमें उच्च तापमान और अस्थिरता थी। इस गलित अवस्था ने पृथ्वी के आंतरिक भाग में कोर, मैंटल, और प्रारंभिक भूत्वक (crust) जैसे स्तरों का गठन किया।
"जायंट इम्पैक्ट हाइपोथेसिस" के अनुसार, मंगल ग्रह के आकार का प्रोटोप्लैनेट "थिया" पृथ्वी से टकराया। इस टक्कर से निकली सामग्री ने पृथ्वी के चारों ओर एक डिस्क बनाई, जो बाद में दो चंद्रमाओं में परिणत हुई। बाद में छोटा चंद्रमा बड़े चंद्रमा से टकराया, जिससे आज का विशाल चंद्रमा बना। इससे चंद्रमा की एक सतह दूसरी की तुलना में अधिक सघन है। इस घटना ने पृथ्वी की भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं और अक्षीय झुकाव पर गहरा प्रभाव डाला।
हेडियन युग में पृथ्वी का वायुमंडल मुख्य रूप से जलवाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, और अमोनिया जैसे गैसों से बना था, जो अग्निक गतिविधियों और धूमकेतु टक्करों से आए। जैसे-जैसे पृथ्वी ठंडी हुई, जलवाष्प घनीभूत होकर वर्षा में बदली, जिससे प्रारंभिक महासागर बने। कुछ जल धूमकेतुओं और उल्कापिंडों से भी आया, और कुछ प्रारंभ से ही पृथ्वी में अन्य पदार्थों के साथ मिश्रित था, जो बाद में प्राकृतिक प्रक्रियाओं से तरल और ठोस रूप में जमा हुआ।
इस दौरान पृथ्वी और चंद्रमा पर असंख्य उल्कापिंड और धूमकेतुओं की टक्कर हुई, जिसने पृथ्वी की सतह पर विशाल गड्ढे बनाए और इसके परिवेश को और अस्थिर किया। इस समय जीवन के प्रारंभिक चिह्न नहीं मिले, लेकिन इन घटनाओं ने बाद के युग में जीवन की उत्पत्ति के लिए रासायनिक परिवेश तैयार किया।
हेडियन युग में पृथ्वी की गलित अवस्था धीरे-धीरे ठंडी होने लगी, जिससे एक पतला और अस्थायी भूत्वक बना। यह भूत्वक मुख्य रूप से बेसाल्टिक था और अक्सर उल्कापिंड टक्करों से नष्ट हो जाता था। फिर भी, यह पृथ्वी की भूवैज्ञानिक स्थिरता की दिशा में पहला कदम था। पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में मिले जिरकॉन क्रिस्टल(लगभग 4400 मिलियन वर्ष पुराने) इस युग के अवशेष हैं और प्रारंभिक भूत्वक की उपस्थिति को दर्शाते हैं।
हेडियन युग में पृथ्वी का आंतरिक भाग अत्यधिक गर्म था, जिसके कारण तीव्र अग्निक गतिविधियां होती थीं। ये अग्निक गतिविधियां जलवाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य गैसों का उत्सर्जन करती थीं, जो प्रारंभिक वायुमंडल के गठन में सहायक थीं। ये गतिविधियां महासागरों के गठन में भी योगदान देती थीं, क्योंकि जलवाष्प घनीभूत होकर जल में बदल रहा था।
हालांकि हेडियन युग में जीवन का स्पष्ट प्रमाण नहीं मिला, इस दौरान जीवन की उत्पत्ति के लिए आवश्यक रासायनिक परिवेश बनना शुरू हुआ। धूमकेतु और उल्कापिंडों के माध्यम से एमिनो एसिड जैसे जैविक अणु पृथ्वी पर आए। प्रारंभिक महासागरों में हाइड्रोथर्मल वेंट्स में रासायनिक प्रक्रियाएं जीवन के प्रारंभिक रासायनिक विकास में सहायक हो सकती थीं।
कुछ वैज्ञानिक तथ्य बताते हैं कि हेडियन युग में पृथ्वी के कोर में तरल लोहे और निकल की गति के कारण एक प्रारंभिक चुम्बकीय क्षेत्र बन सकता था। यह क्षेत्र वायुमंडल को सौर वायु से बचाने में सहायक हो सकता था, जो बाद में जीवन के विकास के लिए महत्वपूर्ण था।
आर्कियन युग पृथ्वी के इतिहास में एक महत्वपूर्ण काल था, जो हेडियन युग के अस्थिर और अग्निमय परिवेश से अधिक स्थिर और जीवन योग्य पृथ्वी की ओर संक्रमण का समय था। इस युग का नामकरण ग्रीक शब्द "ἀρχαῖος" (archaios) से हुआ, जिसका अर्थ "प्राचीन" या "पुरातन" है। यह नाम 1970 के दशक में भूवैज्ञानिकों द्वारा विशेष रूप से उपयोग किया गया, हालांकि इसका प्रारंभिक उपयोग 1911 में जेम्स डाना और अन्य भूवैज्ञानिकों द्वारा शुरू हुआ।
हालांकि हेडियन युग निश्चित रूप से आर्कियन युग से पुराना है, फिर भी आर्कियन युग का नामकरण इसके भूवैज्ञानिक महत्व के कारण किया गया। इस युग में पहली बार स्थिर महाद्वीपीय भूत्वक (continental crust) का गठन हुआ और जीवन की उत्पत्ति भी इसी युग में हुई। हेडियन युग में अस्थिर परिस्थितियां थीं, जो पृथ्वी के इतिहास को शुरू होने से पहले ही नष्ट कर सकती थीं। इसलिए, वैज्ञानिकों ने गहन विचार-विमर्श के बाद इस युग का नामकरण किया।
हेडियन युग में बना पतला और अस्थायी भूत्वक आर्कियन युग में अधिक स्थिर होने लगा। इस समय बेसाल्टिक भूत्वक के साथ ग्रेनाइटिक भूत्वक का गठन शुरू हुआ, जो आज के महाद्वीपीय भूत्वक का पूर्ववर्ती था। ये ग्रेनाइटिक भूत्वक आज भी "क्रेटन" (cratons) के रूप में मौजूद हैं, जैसे कनाडा का शील्ड क्षेत्र और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया का पिलबारा क्रेटन। ये क्रेटन पृथ्वी की सबसे पुरानी शिलाएं संरक्षित करते हैं, जो आर्कियन युग के भूवैज्ञानिक इतिहास को समझने में सहायक हैं।
इस युग में प्लेट टेक्टॉनिक्स संभवतः एक प्रारंभिक रूप में शुरू हुई। हालांकि आधुनिक प्लेट टेक्टॉनिक्स पूरी तरह स्थापित नहीं थी, कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि भूत्वक की गतिशीलता और अंतर्ग्रसन (subduction) प्रक्रिया शुरू हो चुकी थी। इससे महाद्वीपीय भूत्वक की वृद्धि और अग्निक गतिविधियां तेज हुईं।
आर्कियन युग में पृथ्वी का आंतरिक भाग अभी भी गर्म था, जिसके कारण तीव्र अग्निक गतिविधियां होती थीं। ये गतिविधियां जलवाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, और अमोनिया जैसे गैसों का उत्सर्जन करती थीं, जो प्रारंभिक वायुमंडल का निर्माण करती थीं। हेडियन युग की तुलना में आर्कियन युग का वायुमंडल अधिक स्थिर था, लेकिन इसमें ऑक्सीजन की मात्रा नगण्य थी। यह वायुमंडल "अपचायक" (reducing) प्रकृति का था, जो जैविक अणुओं के गठन के लिए अनुकूल था। जलवाष्प घनीभूत होकर वर्षा में बदली, जिससे महासागरों का विस्तार और गहराई बढ़ी।
आर्कियन युग की सबसे महत्वपूर्ण घटना जीवन की उत्पत्ति थी। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि लगभग 3800 मिलियन वर्ष पहले बैक्टीरिया जैसे साधारण एककोशीय जीव (prokaryotes) विकसित हुए। ये जीव मुख्य रूप से महासागरों में, विशेष रूप से हाइड्रोथर्मल वेंट्स के पास विकसित हुए, जहां गर्म जल और खनिज पदार्थ रासायनिक प्रतिक्रियाओं के लिए अनुकूल परिवेश प्रदान करते थे।
इस युग के प्रारंभिक जीव सूक्ष्मजीव (microbes) थे, जो अवायवीय श्वसन (anaerobic respiration) करते थे। ये methanogens या अन्य रासायनिक ऊर्जा पर निर्भर थे। पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में मिले 3500 मिलियन वर्ष पुराने स्ट्रोमाटोलाइट्स इस प्रारंभिक जीवन के प्रमाण हैं। स्ट्रोमाटोलाइट्स सायनोबैक्टीरिया द्वारा बनाए गए शिला स्तर हैं, जो पृथ्वी के पहले जीव थे और प्रकाशसंश्लेषण (photosynthesis) के माध्यम से ऑक्सीजन उत्पन्न करते थे।
आर्कियन युग के अंत तक (लगभग 3000 मिलियन वर्ष पहले) सायनोबैक्टीरिया जैसे जीव विकसित हुए, जो सूर्य की प्रकाश ऊर्जा का उपयोग कर कार्बन डाइऑक्साइड और जल से शर्करा उत्पन्न करते थे, जिसके उप-उत्पाद के रूप में ऑक्सीजन निकलता था। इससे वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ने लगी, जिसका प्रभाव बाद के प्रोटेरोज़ोइक युग में अधिक स्पष्ट हुआ।
आर्कियन युग में पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र अधिक स्थिर हुआ। पृथ्वी के तरल बाह्य कोर में लोहे और निकल की गतिशीलता ने डायनमो प्रभाव उत्पन्न किया, जो चुम्बकीय क्षेत्र बनाता था। यह क्षेत्र वायुमंडल को सौर वायु और अंतरिक्षीय विकिरण से बचाता था, जो जीवन के विकास और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण था।
हेडियन युग की तीव्र उल्कापिंड टक्करें आर्कियन युग में धीरे-धीरे कम हुईं। इससे पृथ्वी की सतह अधिक स्थिर हुई, जो जीवन के विकास और भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं के लिए अनुकूल थी।
आर्कियन युग पृथ्वी के इतिहास में एक क्रांतिकारी काल था, जिसमें भूवैज्ञानिक और जैविक विकास ने मिलकर पृथ्वी को जीवन योग्य ग्रह बनाया। इस युग के बाद प्रोटेरोज़ोइक युग(2500 से 538.8 मिलियन वर्ष पहले) शुरू हुआ, जो पृथ्वी के विकास में अगला चरण था।
प्रोटेरोज़ोइक युग (2500 से 538.8 मिलियन वर्ष पहले) पृथ्वी के इतिहास में एक महत्वपूर्ण काल था, जिसमें आर्कियन युग में शुरू हुई भूवैज्ञानिक और जैविक प्रक्रियाएं और विकसित हुईं, जिसने फैनरोज़ोइक युग में जीवन के विस्फोट (Cambrian Explosion) के लिए मंच तैयार किया। "प्रोटेरोज़ोइक" शब्द ग्रीक शब्दों "प्रोटेरो" (पूर्व) और "ज़ोए" (जीवन) से लिया गया है, जो प्रारंभिक जीवन के समय को दर्शाता है। इस युग का नामकरण 1900 के दशक में भूवैज्ञानिकों द्वारा किया गया था।
प्रोटेरोज़ोइक युग में महाद्वीपीय भूत्वक (continental crust) का विकास तेज हुआ। आर्कियन युग में बने क्रैटन्स (प्राचीन और स्थिर भूत्वक) इस युग में एकत्रित होकर विशाल महाद्वीपों का निर्माण करने लगे। इस युग में प्लेट टेक्टॉनिक्स की प्रक्रिया अधिक सक्रिय हुई, जिसने महाद्वीपों के टकराव और विभाजन में योगदान दिया। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप कई सुपरकॉन्टिनेंट्स बने और टूटे। उदाहरण के लिए, लगभग 1800 मिलियन वर्ष पहले कोलंबिया नामक सुपरकॉन्टिनेंट बना और बाद में टूट गया। इसके बाद, लगभग 1100 मिलियन वर्ष पहले रोडिनिया नामक एक और सुपरकॉन्टिनेंट बना, जो प्रोटेरोज़ोइक युग के अंत तक टूटकर आधुनिक महाद्वीपों के पूर्ववर्ती भागों का निर्माण किया। इन सुपरकॉन्टिनेंट्स के निर्माण और विखंडन ने पृथ्वी के भूवैज्ञानिक इतिहास को गहराई से प्रभावित किया और महासागरों व भूभागों के विन्यास को बदल दिया।
प्रोटेरोज़ोइक युग की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी GOE या द ग्रेट ऑक्सिडेसन इवेंट जो लगभग 2400 से 2000 मिलियन वर्ष पहले घटी। आर्कियन युग में प्रकाशसंश्लेषण करने वाले सायनोबैक्टीरिया ने ऑक्सीजन उत्पादन शुरू किया था, लेकिन प्रोटेरोज़ोइक युग में ऑक्सीजन की मात्रा नाटकीय रूप से बढ़ी। यह ऑक्सीजन पृथ्वी के वायुमंडल और महासागरों में जमा होने लगी, जिसने पृथ्वी के रासायनिक परिवेश को मौलिक रूप से बदल दिया। प्रारंभ में, उत्पादित ऑक्सीजन ने महासागरों में मौजूद लोहे और अन्य खनिजों के साथ प्रतिक्रिया कर ऑक्साइड बनाए, जिनका प्रमाण आज बैंडेड आयरन फॉर्मेशन्स (BIFs)के रूप में देखा जाता है। ये BIFs महासागरों में ऑक्सीजन की वृद्धि का प्रमाण हैं। बाद में, जब इन खनिजों ने ऑक्सीजन के साथ पूरी तरह प्रतिक्रिया कर ली, तब ऑक्सीजन वायुमंडल में जमा होने लगी। इससे सूक्ष्मजीवों में ऑक्सीजन-निर्भर श्वसन (aerobic respiration) का विकास हुआ, जिसने जीवन की विविधता को बढ़ाया।
हालांकि, वायुमंडल में ऑक्सीजन की वृद्धि कई सूक्ष्मजीवों के लिए विषाक्त थी, क्योंकि पहले अधिकांश सूक्ष्मजीव ऑक्सीजन-मुक्त (anaerobic) परिवेश में विकसित हुए थे। इसे "ऑक्सीजन संकट" भी कहा जाता है, जिसने जीवन के विकास में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लाया।
प्रोटेरोज़ोइक युग में जीवन की विविधता नाटकीय रूप से बढ़ी। आर्कियन युग में बने प्रोकैरियोट्स (prokaryotes) जैसे एककोशीय सूक्ष्मजीव इस युग में और विकसित हुए। इस युग में यूकैरियोट्स(eukaryotes) नामक जटिल कोशिकाओं वाले जीवों की उत्पत्ति हुई, जिनमें नाभिक (nucleus) और अन्य कोशिकांग (organelles) होते हैं। लगभग 2000 मिलियन वर्ष पहले यूकैरियोटिक कोशिकाओं का उद्भव हुआ, जो संभवतः एंडोसिम्बायोसिस प्रक्रिया के माध्यम से हुआ। इस प्रक्रिया में एक प्रोकैरियोटिक जीव (जैसे सायनोबैक्टीरिया) दूसरे कोशिका के अंदर रहकर माइटोकॉन्ड्रिया या क्लोरोप्लास्ट जैसे कोशिकांग में परिवर्तित हुआ।
प्रोटेरोज़ोइक युग के अंत में, लगभग 800-600 मिलियन वर्ष पहले, एककोशीय जीव बहुकोशीय जीवों के रूप में विकसित होने लगे। ये जीव मुख्य रूप से साधारण शैवाल (algae) और अन्य सरल बहुकोशीय जीव थे। एडियाकरण बायोटा (635-538.8 मिलियन वर्ष पहले) जटिल बहुकोशीय जीवों का पहला प्रमाण है। ये जीव नरम शरीर वाले थे और मुख्य रूप से महासागरों में रहते थे। इसने फैनरोज़ोइक युग में होने वाले कैम्ब्रियन विस्फोट के लिए मंच तैयार किया।
प्रोटेरोज़ोइक युग में पृथ्वी के जलवायु में व्यापक परिवर्तन हुए। इस युग में कई वैश्विक हिमयुग (global glaciations) हुए, जिन्हें स्नोबॉल अर्थ कहा जाता है, जिसमें पृथ्वी की सतह लगभग पूरी तरह हिमाच्छादित हो गई थी। ये घटनाएं मुख्य रूप से 750-580 मिलियन वर्ष पहले हुईं, जिन्हें क्रायोजेनियन हिमयुग (Cryogenian Glaciations) कहा जाता है। इस दौरान पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों से लेकर विषुवतीय क्षेत्र तक बर्फ से ढके हुए थे। इन हिमयुगों का कारण संभवतः वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों (जैसे कार्बन डाइऑक्साइड) की कमी और ऑक्सीजन की वृद्धि थी, जिसने जलवायु को ठंडा किया। इन चरम जलवायु परिवर्तनों ने जीवन पर गहरा प्रभाव डाला, लेकिन साथ ही जीवन के विकास को भी तेज किया। हिमयुग के बाद ज्वालामुखी उद्गारों से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन हुआ, जिसने पृथ्वी को फिर से गर्म किया और बहुकोशीय जीवों के विकास में सहायता की।
इस युग में ज्वालामुखी उद्गार जारी रहे, जिसने वायुमंडल और महासागरों में गैसें और खनिज प्रदान किए। महासागर अधिक गहरे और विस्तृत हुए, जो जीवन के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण परिवेश प्रदान करते थे। हाइड्रोथर्मल वेंट्स इस युग में भी जीवन के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे, क्योंकि ये रासायनिक ऊर्जा और जैविक अणु प्रदान करते थे।
प्रोटेरोज़ोइक युग में पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र अधिक स्थिर हुआ। यह क्षेत्र वायुमंडल को सौर हवाओं और अंतरिक्षीय विकिरण से बचाता था, जो जीवन के विकास और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण था। यह वायुमंडल में ऑक्सीजन और अन्य गैसों के संरक्षण में सहायक था।
प्रोटेरोज़ोइक युग में पृथ्वी ने भूवैज्ञानिक और जैविक दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रगति की। इस युग में कोई बड़े आकार के जीव जैसे मछलियां या सरीसृप नहीं थे; जीवन मुख्य रूप से सूक्ष्मजीवों और सरल बहुकोशीय जीवों तक सीमित था। जटिल और बड़े जीवों का विकास बाद के फैनरोज़ोइक युग में हुआ।
फैनरोज़ोइक युग (538.8 मिलियन वर्ष पहले से वर्तमान तक) पृथ्वी के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण और जीवन से परिपूर्ण काल है। "फैनरोज़ोइक" नाम ग्रीक शब्दों "फैनेरोस" (दृश्य) और "ज़ोए" (जीवन) से लिया गया है, जो इस युग में दृश्यमान जीवन के व्यापक विकास को दर्शाता है। इस युग का नामकरण 1835 में जॉन फिलिप्स द्वारा किया गया था।
फैनरोज़ोइक युग को तीन प्रमुख उपयुगों में विभाजित किया गया है:
-पैलियोज़ोइक(538.8-251.9 मिलियन वर्ष पहले)
-मेसोज़ोइक(251.9-66 मिलियन वर्ष पहले)
-सेनोज़ोइक (66 मिलियन वर्ष पहले से वर्तमान तक)
फैनरोज़ोइक युग की शुरुआत में, पैलियोज़ोइक उपयुग के कैम्ब्रियन काल(538.8-485.4 मिलियन वर्ष पहले) में कैम्ब्रियन विस्फोट नामक एक ऐतिहासिक घटना घटी। इस दौरान, भूवैज्ञानिक दृष्टि से बहुत कम समय (20-25 मिलियन वर्ष) में जीवन की विविधता नाटकीय रूप से बढ़ी। ट्राइलोबाइट्स,मॉलस्क्स, और अन्य अकशेरुकी (invertebrates) जीव महासागरों में उभरे। इस विस्फोट के पीछे के कारण थे: ऑक्सीजन की वृद्धि, जलवायु स्थिरता, और कठोर कंकाल व शरीर संरचना जैसे नए अनुकूलन। इसने जटिल जीवन का आधार स्थापित किया।
पैलियोज़ोइक उपयुग में कशेरुकी जीवों (vertebrates) की उत्पत्ति भी हुई। ऑर्डोविशियन काल(485.4-443.8 मिलियन वर्ष पहले) में एग्नैथन्स जैसे प्रारंभिक मछलियां विकसित हुईं। इसके बाद,डिवोनियन काल (419.2-358.9 मिलियन वर्ष पहले) में मछलियों की इतनी प्रजातियां उभरीं कि इसे "मछलियों का युग" (Age of Fishes) कहा जाता है। इस काल में जबड़े वाली मछलियां (jawed fish) और प्रथम उभयचर (amphibians) विकसित हुए। उभयचरों ने जल से स्थल पर संक्रमण शुरू किया, जो बाद में सरीसृपों, पक्षियों, और स्तनधारियों के विकास में सहायक रहा।
कार्बोनिफेरस और पर्मियन काल (358.9-251.9 मिलियन वर्ष पहले) में स्थल पर जीवन का विकास तेज हुआ। फर्न, लाइकोफाइट्स, और अन्य पौधों ने विशाल वनों का निर्माण किया, जो स्थल को आच्छादित करते थे। इन पौधों ने प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन उत्पन्न की, जिससे वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ी। इस ऑक्सीजन वृद्धि के कारण विशाल आकार के कीड़े विकसित हुए, जैसे कि 70 सेंटीमीटर लंबे कनखजूरे। इस काल में प्रथम सरीसृप भी विकसित हुए। इन वनों के जैव पदार्थों का जमाव आज के कोयले का स्रोत बना।
पैलियोज़ोइक युग में कई हिमयुग देखे गए, जैसे ऑर्डोविशियन-सिलुरियन और कार्बोनिफेरस-पर्मियन हिमयुग। मेसोज़ोइक युग अधिक गर्म था, जिसने डायनासोरों और पौधों के विकास में सहायता की। सेनोज़ोइक युग में पृथ्वी धीरे-धीरे ठंडी होने लगी, जिसके परिणामस्वरूप क्वाटरनरी काल में कई हिमयुग आए।
भूवैज्ञानिक दृष्टि से, पैंजिया नामक सुपरकॉन्टिनेंट पैलियोज़ोइक युग में बना और मेसोज़ोइक युग में टूटकर आधुनिक महाद्वीपों में परिवर्तित हुआ। सेनोज़ोइक युग में हिमालय पर्वत का निर्माण भारत और यूरेशिया प्लेट के टकराव से हुआ।
फैनरोज़ोइक युग में वायुमंडल अधिक ऑक्सीजन-समृद्ध हुआ। पैलियोज़ोइक युग में पौधों के विस्तार ने ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाई, जिसने जटिल जीवन के विकास में सहायता की। सेनोज़ोइक युग में वायुमंडल आधुनिक अवस्था में पहुंचा, जिसमें ऑक्सीजन (21%) और नाइट्रोजन (78%) प्रमुख घटक हैं।
फैनरोज़ोइक युग में कई वृहद विलुप्ति घटनाएं घटीं, जिन्होंने जीवन के विकास को गहराई से प्रभावित किया:
-ऑर्डोविशियन-सिलुरियन विलुप्ति (लगभग 443 मिलियन वर्ष पहले): इसने पृथ्वी की लगभग 85% प्रजातियों को नष्ट किया, मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन और हिमयुग के कारण।
-डिवोनियन विलुप्ति(375-360 मिलियन वर्ष पहले): इसने समुद्री जीवन, विशेष रूप से मछलियों और प्रवालों को प्रभावित किया।
-पर्मियन-ट्रायासिक विलुप्ति(251.9 मिलियन वर्ष पहले): यह पृथ्वी की सबसे बड़ी विलुप्ति थी, जिसमें 96% समुद्री और 70% स्थलीय प्रजातियां नष्ट हो गईं। इसका कारण तीव्र ज्वालामुखी उद्गार, जलवायु परिवर्तन, और ऑक्सीजन की कमी थी।
-क्रेटेशियस-पेलियोजीन विलुप्ति(66 मिलियन वर्ष पहले): इसने डायनासोरों और कई अन्य प्रजातियों को नष्ट किया, जो चिक्सुलुब उल्कापिंड प्रभाव के कारण हुआ।
इन विलुप्तियों ने जीवन के विकास को नए दिशाओं में मोड़ा और नई प्रजातियों के विकास के लिए अवसर प्रदान किए।
मेसोज़ोइक युग को "डायनासोर युग" के रूप में जाना जाता है, जिसमें सरीसृपों, विशेष रूप से डायनासोरों का आधिपत्य था। ट्रायासिक, जुरासिक, और क्रेटेशियस काल में डायनासोर जैसे सॉरोपॉड्स,ब्रैकियोसॉरस और थेरोपॉड्स विभिन्न आकारों और प्रकारों में विकसित हुए। इस युग में आर्कियोप्टेरिक्स जैसे प्रथम पक्षी भी विकसित हुए।
क्रेटेशियस काल में पुष्पीय पौधों या सपुष्पक पौधों(flowering plants) का उदय हुआ, जिन्होंने परागण करने वाले कीटों और अन्य जीवों के साथ जैविक संबंध बनाए। इन पौधों ने पारिस्थितिकी तंत्र और खाद्य शृंखला को और जटिल किया।
क्रेटेशियस-पेलियोजीन विलुप्ति के बाद डायनासोरों के अंत ने स्तनधारियों को विकास का अवसर प्रदान किया। पेलियोजीन और नियोजीन काल में व्हेल, हाथी, घोड़े, और प्राइमेट्स जैसे विभिन्न स्तनधारी विकसित हुए।
प्राइमेट्स का विकास लगभग 66 मिलियन वर्ष पहले पेलियोसीन युग में शुरू हुआ। इस समय प्लेसियाडैपिफॉर्म्स जैसे आदिम प्राइमेट्स उभरे, जो छोटे, वृक्षवासी जीव थे और जिनमें बड़े आंखें और नाखून जैसे लक्षण थे।
ईयोसीन युग (56-33.9 मिलियन वर्ष पहले) में वास्तविक प्राइमेट्स का विकास हुआ। एडापिडे और ओमोमायिडे जैसे जीव इस समय उभरे, जो बड़े मस्तिष्क और सामाजिक व्यवहार प्रदर्शित करते थे। ओलिगोसीन युग(33.9-23 मिलियन वर्ष पहले) में पुराने विश्व के वानर (कैटार्हिनी) और आदिम वानर (होमिनोइडिया) की उत्पत्ति हुई। एजिप्टोपिथेकस जैसे जीव अफ्रीका और एशिया में विकसित हुए और आधुनिक वानरों व मनुष्यों के साझा पूर्वज माने जाते हैं। मियोसीन युग(23-5.3 मिलियन वर्ष पहले) में प्राइमेट्स की विविधता बढ़ी। प्रोकॉन्सुल और ड्रायोपिथेकस जैसे आधुनिक वानर विकसित हुए। प्रोकॉन्सुल अफ्रीका में मनुष्यों और अन्य वानरों के साझा पूर्वज थे, जबकि ड्रायोपिथेकस यूरोप और एशिया में गोरिल्ला, चिंपैंजी, और ओरंगुटान के पूर्वज थे। प्लियोसीन कल्प (5.3 मिलियन वर्ष पहले) में होमिनिडे का विकास शुरू हुआ। साहेलैंथ्रोपस और आर्डिपिथेकस जैसे जीव अफ्रीका में उभरे, जिनमें द्विपाद चलने के प्रारंभिक लक्षण थे। ऑस्ट्रालोपिथेकस(जैसे "लूसी") भी इस समय विकसित हुए, जो द्विपादी थे लेकिन वानर जैसे छोटे मस्तिष्क और लंबी भुजाएं रखते थे।
प्लेइस्टोसीन कल्प (2.58 मिलियन वर्ष पहले) में होमो प्रजाति की उत्पत्ति हुई। होमो हैबिलिस,होमो इरेक्टस और बाद में होमो सेपियन्स अफ्रीका में विकसित हुए। होमो हैबिलिस औज़ार निर्माण में दक्ष थे, होमो इरेक्टस ने अफ्रीका से एशिया और यूरोप में विस्तार किया और आग का नियंत्रण व जटिल औज़ार बनाए। होमो सेपियन्स, आधुनिक मनुष्य, लगभग 300,000 वर्ष पहले अफ्रीका में उभरे और सामाजिक संरचना, भाषा, और संस्कृति में अग्रणी हुए।
फैनरोज़ोइक युग में जीवन की विविधता और जटिलता ने पृथ्वी को एक गतिशील और जीवनमय ग्रह बनाया। कैम्ब्रियन विस्फोट, कशेरुकी और स्थलीय जीवन का विकास, डायनासोरों का आधिपत्य, स्तनधारियों और मनुष्यों की उत्पत्ति, वृहद विलुप्तियां, और जलवायु परिवर्तन इस युग की प्रमुख घटनाएं थीं। सबसे महत्वपूर्ण बात, इस युग में होमो सेपियन्स की उत्पत्ति हुई, जो बाद में पृथ्वी पर सर्वोच्च प्रजाति बने।
आधुनिक मनुष्य ने अपने और अपने पूर्वजों के ज्ञान की निरंतरता (Persistence of Knowledge) के बल पर पृथ्वी के कोटि-कोटि वर्ष पुराने इतिहास को जीवाश्मों, शिलाओं, और अन्य भूवैज्ञानिक साक्ष्यों के माध्यम से समझने में सफलता प्राप्त की।
कुछ ने समय को दैवीय चक्रों में देखा, कुछ ने मानवीय नैतिकता के उत्थान-पतन में, कुछ ने प्रौद्योगिकी के कदमों में, और कुछ ने विज्ञान की सटीक गणनाओं में। लेकिन सभी दृष्टिकोणों में एक सत्य स्पष्ट है—समय मानवीय चिंतन की सीमाओं को पार करने वाला एक अनंत साक्षी है। पृथ्वी का इतिहास हमें सिखाता है कि समय में सब कुछ जन्म लेता है, विकसित होता है, और समय के साथ लीन भी हो जाता है। समय एक अनंत प्रवाह है, जो सभी को अपनी गति में आगे ले जाता है। यह सृष्टि और विनाश का साक्षी है और परिवर्तन का मूल चालक है। आने वाले समय में, समय हमें नई संभावनाएं, प्रौद्योगिकी की अभूतपूर्व प्रगति, और मानवीय चेतना का गहरा उद्भव दिखा सकता है। लेकिन यह हमें संभावित संकटों, नैतिक प्रश्नों, और अज्ञात अनिश्चितताओं की ओर भी ले जा सकता है। समय की यह अनिश्चित प्रकृति ही इसे एक रहस्यमय और अपरिहार्य शक्ति बनाती है। आगे क्या होगा, यह कोई निश्चित रूप से नहीं बता सकता, लेकिन समय की गति में हम सभी एक अज्ञात यात्री हैं। यह हमें सिखाता है कि जीवन के प्रत्येक क्षण को ग्रहण कर, सीखकर, और अग्रगामी होकर ही हमारी सार्थकता है।