हरिहर एक बहुत ही सीधा-सादा और भोला व्यक्ति था। एक दिन वह पास के गाँव में होने वाले अस्थाई सब्जी बाजार में सब्जियाँ खरीदने गया। उस समय नई-नई भारत में अमेरिका से कुमड़ा (Cucurbita maxima) आया था। उस समय गाँव के लोग पेठख ( Benincasa hispida) को ही कर्कारु कहते थे ।
अब चूँकि कुमड़ा नया था तो लोग इसे ज्यादा खरीदते नहीं थे। कई लोगों से बेचने की कोशिश करने के बाद कुमड़े का व्यापारी निराश हो चुका था। तभी उसने हरिहर को उधर से गुजरते देखा और उसे पास बुलाया। हरिहर से कुछ देर बात करने के बाद व्यापारी समझ गया कि यह व्यक्ति बहुत सीधा और भोला है। इसलिए उसने उसे एक कुमड़ा देते हुए कहा, "देखो, यह घोड़े का अंडा है। इसे खाने से शरीर में बहुत ताकत आती है।"
हरिहर भोला था, लेकिन वह व्यापारी की बात पर इतनी आसानी से विश्वास नहीं कर पा रहा था। व्यापारी ने उसका मनोभाव समझ लिया और फिर कहा, "यह अंडा साधारण घोड़े का नहीं, पक्षीराज घोड़े का अंडा है। पक्षीराज घोड़ा आकाश में उड़ता है और बहुत तेज दौड़ता है।" हरिहर का सीधा था इसलिए उसके बातों में आ गया। वह सब्जियाँ खरीदना भूलकर उस कुमड़े को पक्षीराज घोड़े का अंडा समझकर सब्जी बाजार से खरीद लाया और घर की ओर चल पड़ा।
इधर जंगल में राजा के लोग शेर का शिकार कर रहे थे। आज केवल गुजरात के गिर अभयारण्य में ही 600 से 1000 के बीच शेर बचे हैं, लेकिन सिर्फ 500 साल पहले पूरे भारत में शेर हर जगह पाए जाते थे। राजा के लोगों के शिकार से डरकर एक शेर झाड़ी में छिपा हुआ था। पाँच दिन से शिकारी उस शेर को मारने की कोशिश में थे, लेकिन शेर अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर छिप रहा था। बेचारा शेर अपनी जिंदगी की सारी उम्मीद छोड़ चुका था, फिर भी वह छिपता रहा।
वहां सांज का वक्त था । हरिहर उसी रास्ते से घोड़े के अंडे के रूप में कुमड़ा लिए खुशी-खुशी घर जा रहा था कि अचानक ठोकर लगने से उसके हाथ से कुमड़ा छिटककर उस झाड़ी में जा गिरा, जहाँ शेर छिपा था।
शेर तो शिकारियों के डर से झाड़ी में छिपा था। जैसे ही कुमड़ा उस झाड़ी में गिरा, वह बरगद के पत्ते की तरह काँपने लगा।
हरिहर ने झाड़ी में घोड़े का अंडा ढूँढते-ढूँढते वहाँ छिपे शेर की गर्दन पकड़ ली। हरिहर ने सोचा कि शायद पक्षीराज घोड़े का अंडा नीचे गिरकर फट गया होगा और पक्षीराज घोड़ा उसमें से निकल आया होगा। संध्या के समय झाड़ी वाली जगह पर कुछ ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था। इधर शिकारियों के डर से शेर का तो पहले ही पीलिया हो चुका था। जैसे ही हरिहर ने उसे जोर से पकड़ा, वह बुरी तरह से डरगया और आँखें मूँदकर वह जान बचाने के लिए दौड़ पड़ा। हरिहर भी किसी तरह शेर की पीठ पर बैठ गया।
दौड़ते-दौड़ते शेर ने कई रास्ते पार कर लिए। हरिहर का गाँव-गली पीछे छूट गया, लेकिन उसे कुछ पता नहीं चला। हरिहर शेर की पीठ पर बैठकर सोच रहा था कि वह पक्षीराज घोड़े पर बैठकर आकाश में उड़ रहा है।
जंगल के रास्ते में शेर दौड़ रहा था, इसलिए हरिहर को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। लेकिन जैसे ही शेर जंगल छोड़कर खुले मैदान में दौड़ने लगा, उसे देखकर हरिहर का हलक सूख गया। शेर दौड़ रहा था और हरिहर किसी तरह एक डार पकड़कर अपनी जान बचा पाया।
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