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रविवार, 13 जुलाई 2025

Dancing Mania: मध्ययुगीन यूरोप का रहस्यमयी मृत्यु नृत्य

मध्ययुगीन यूरोप में जब प्लेग का प्रकोप और धार्मिक उन्माद लोगों के मन को आतंकित कर रहा था, तब एक अज्ञात और रहस्यमयी घटना ने समाज को और भी भयभीत कर दिया। यह थी Dancing mania (नृत्य उन्माद), एक कुख्यात और अविश्वसनीय सामाजिक घटना, जिसमें सैकड़ों लोग अनियंत्रित रूप से नाचते थे, थककर बेहोश होने या मृत्यु तक। डांसिंग मैनिया का नृत्य आज के क्लब या उत्सव के नृत्य जैसा नहीं था। यह एक विक्षिप्त, मृत्यु से पहले का नृत्य था, लेकिन यह नृत्य क्यों और कैसे हो रहा था, यह उस समय कोई नहीं समझ पाया।


मध्ययुगीन यूरोप के विभिन्न देशों में अलग-अलग समय पर डांसिंग मैनिया देखी गई। सन् 1374 में जर्मनी के आखेन शहर में एक अज्ञात शक्ति ने लोगों को अपने कब्जे में ले लिया। एक व्यक्ति ने सड़क पर अचानक नाचना शुरू किया, और कुछ ही समय में अन्य लोग उसके साथ शामिल हो गए। यह नृत्य किसी संगीत या उत्सव का हिस्सा नहीं था; यह एक अनियंत्रित, अव्यवस्थित, ताल-लयहीन मृत्यु का नृत्य था। यह लोगों की इच्छा से नहीं हो रहा था। किसी अज्ञात शक्ति के प्रभाव में लोग नाचते-नाचते रोते, चीखते, और कुछ क्षणों बाद बेहोश होकर गिर जाते या मर जाते। यह घटना राइन नदी के क्षेत्र से फैलकर फ्रांस, इटली और नीदरलैंड तक पहुंच गई।

Dancing Maniaकी सबसे प्रसिद्ध घटना 1518 में स्ट्रासबर्ग में हुई। उस वर्ष जुलाई में, स्ट्रासबर्ग की एक महिला, फ्राउ ट्रोफिया, ने सड़क पर नाचना शुरू किया। उनके नृत्य को देखकर अन्य लोग भी शामिल हो गए, और एक दिन के भीतर सैकड़ों लोग एक अज्ञात उन्माद में नाच रहे थे। यह घटना दो महीने तक चली, और कई लोग थकान, पक्षाघात, या दिल का दौरा पड़ने से मर गए। समकालीन विवरणों के अनुसार, डांसिंग मैनिया के शिकार लोगों में से प्रतिदिन 15 लोग तक मर रहे थे। स्ट्रासबर्ग की घटना से पहले भी, 1237 में बच्चों के बीच और 1347 में इटली में ऐसी ही घटनाएं देखी गई थीं। इटली में इसे टारेंटिज्म कहा जाता था, जिसे टारेंटुला मकड़ी के काटने से जोड़ा गया था।

मध्ययुगीन यूरोपवासियों ने इसे दैवीय अभिशाप या संत विटस के श्राप के रूप में देखा। कुछ ने इसे भूत-प्रेत या जादू-टोना से जोड़ा। लेकिन आधुनिक विज्ञान के आधार पर Dancing mania के कारणों के बारे में कई सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं।

मास साइकोजेनिक इलनेस (MPI) सबसे स्वीकार्य सिद्धांतों में से एक है। मध्ययुगीन यूरोप उस समय अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था। ब्लैक डेथ (प्लेग) ने लाखों लोगों की जान ले ली थी, गरीबी और अकाल व्यापक था, और धार्मिक उन्माद ने लोगों के मन में भय और अनिश्चितता पैदा कर दी थी। इस मानसिक तनाव ने एक सामूहिक मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया पैदा की हो सकती है, जिसमें एक व्यक्ति का व्यवहार दूसरों को प्रभावित करता था। यह एक सामाजिक "महामारी" थी, जिसमें मानसिक संक्रामकता शारीरिक रोगों से भी अधिक शक्तिशाली थी।

एर्गट पॉइजनिंग सिद्धांत के अनुसार, एक फंगस जिसे एर्गट कहा जाता है, और जो Rye (Secale cereale) अनाज में उगता है, इसका कारण हो सकता है। एर्गट फंगस में LSD जैसे हैलुसिनोजेनिक रसायन होते हैं, जो भोजन के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर मरोड़, भ्रम, और अनियंत्रित व्यवहार पैदा कर सकते हैं। चूंकि डांसिंग मैनिया की घटनाएं अनाज-निर्भर क्षेत्रों में अधिक देखी गई थीं, इसलिए कुछ लोग मानते हैं कि यह इसका कारण हो सकता है।

मध्ययुगीन यूरोप में आज की तरह वैज्ञानिक विश्वास के बजाय धार्मिक विश्वास अधिक प्रबल थे। भारत में भी हम कभी-कभी कुछ ईसाई संस्थानों द्वारा धर्म के नाम पर लोगों को नचाते हुए देखते हैं। उस समय भी यूरोप के ईसाइयों में इस तरह का धार्मिक उन्माद और अंधविश्वास प्रबल था। तत्कालीन यूरोपवासी मानते थे कि नृत्य के माध्यम से वे दैवीय शक्ति से जुड़ रहे हैं या अभिशाप से मुक्ति पा रहे हैं। इटली में टारेंटिज्म इसी तरह के लोकविश्वास से उत्पन्न हुआ था। उस समय इटली के ईसाई मानते थे कि टारेंटुला मकड़ी के जहर को नृत्य के माध्यम से निकाला जा सकता है। यह विश्वास एक सांस्कृतिक रीति में बदल गया, जिसमें टारेंटेला नामक नृत्य इसका हिस्सा बन गया। इस सिद्धांत को मानने वाले लोग कहते हैं कि Dancing mania जैसी घटनाएं तत्कालीन ईसाई समाज में व्याप्त अंधविश्वास के कारण हुईं।

कुछ शोधकर्ताओं ने इसे मिर्गी या अन्य न्यूरोलॉजिकल अवस्थाओं से जोड़ा है। लेकिन चूंकि Dancing mania एक सामूहिक घटना थी, इसलिए केवल न्यूरोलॉजिकल कारणों की तुलना में सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारण अधिक प्रभावशाली होने की संभावना है।

मध्ययुगीन यूरोप में Dancing mania के परिणाम भयावह थे। स्ट्रासबर्ग में थकान, दिल का दौरा, या अन्य शारीरिक कारणों से सैकड़ों लोग मरे। तत्कालीन अधिकारियों ने इसे नियंत्रित करने के लिए अज्ञात उपाय अपनाए। कुछ स्थानों पर नृत्य को प्रोत्साहित किया गया, क्योंकि लोग मानते थे कि यह दैवीय अभिशाप से मुक्ति दिलाएगा। अन्य स्थानों पर नृत्य पर प्रतिबंध लगाया गया, लेकिन इससे और अधिक उन्माद बढ़ा। धार्मिक नेताओं ने मंत्र और प्रार्थनाओं के माध्यम से इसे नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन ज्यादातर मामलों में यह असफल रहा।

इस घटना ने समाज पर गहरा प्रभाव छोड़ा। इसने धार्मिक और सामाजिक सुधारों के लिए दबाव पैदा किया और लोगों में भय और अंधविश्वास को और बढ़ाया। दीर्घकालिक दृष्टिकोण से, डांसिंग मैनिया मनोविज्ञान और सामूहिक व्यवहार पर शोध का एक प्रमुख विषय बन गया।

आधुनिक युग में, डांसिंग मैनिया एक रहस्यमयी ऐतिहासिक घटना के रूप में साहित्य, सिनेमा और कला में स्थान पा चुका है। 1832 में जस्टस हेकेर की पुस्तक "The Dancing Mania" में इस विषय पर पहली विस्तृत जानकारी प्रकाशित हुई, जिसने शोधकर्ताओं को इसके मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कारणों की खोज करने के लिए प्रेरित किया। मध्ययुगीन चित्रकला में, इस घटना को असहाय और उन्मादग्रस्त लोगों के चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है।

आधुनिक सिनेमा और वृत्तचित्रों में, स्ट्रासबर्ग की घटना को एक अज्ञात महामारी के रूप में चित्रित किया गया है। इसे आधुनिक सामूहिक हिस्टीरिया की घटनाओं, जैसे कि 2011 में न्यूयॉर्क के "ले रॉय हाईस्कूल" में अचानक देखे गए "टिक डिसऑर्डर" से तुलना की जाती है।

डांसिंग मैनिया की घटनाओं के इतिहास से पता चलता है कि मध्ययुगीन यूरोपवासी कितने धार्मिक अंधविश्वासी थे। लेकिन इस धार्मिक अंधविश्वास के दुष्प्रभाव को महसूस कर यूरोपीय समाज के बुद्धिजीवियों ने 15वीं शताब्दी से इसे समाज से मुक्त करने के लिए कार्य शुरू किया। यूरोप में 15वीं शताब्दी के पुनर्जागरण (Renaissance) और 16वीं शताब्दी की वैज्ञानिक क्रांति के कारण यूरोपीय समाज बड़े कष्टों के बाद धार्मिक अंधविश्वास से मुक्त हो सका। यदि उस समय यूरोप में कई शताब्दियों तक फैली सांस्कृतिक, धार्मिक और वैज्ञानिक क्रांति नहीं हुई होती, तो आज भी यूरोप के ईसाई डांसिंग मैनिया के शिकार होकर सड़कों पर नाच रहे होते।
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